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*शिवालिक पहाड़ियाँ [[भारत]] के [[सिक्किम]] राज्य में [[तिस्सा नदी]] से पश्चिम-पश्चिमोत्तर की ओर, [[नेपाल]] से पश्चिमोत्तर भारत की ओर और उत्तरी [[पाकिस्तान]] की ओर 1600 किमी से अधिक की दूरी तक विस्तृत में स्थित है।
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'''शिवालिक पहाड़ियाँ''' [[भारत]] के [[सिक्किम]] राज्य में [[तिस्सा नदी]] से पश्चिम-पश्चिमोत्तर की ओर, [[नेपाल]] से पश्चिमोत्तर भारत की ओर और उत्तरी [[पाकिस्तान]] की ओर 1600 किमी से अधिक की दूरी तक विस्तृत में स्थित है।
 
*शिवालिक पहाड़ियाँ को उपहिमालयी श्रेणी, शिवालिक पर्वतश्रेणी या बाह्य हिमालय भी कहा जाता है।
 
*शिवालिक पहाड़ियाँ को उपहिमालयी श्रेणी, शिवालिक पर्वतश्रेणी या बाह्य हिमालय भी कहा जाता है।
 
*कई स्थानों पर ये पहाड़ियाँ 16 किमी चौड़ी हैं और इनकी औसत ऊंचाई 900 से 1200 मीटर है। ये पहाड़ियाँ [[सिंधु नदी|सिंधु]] और [[गंगा]] नदियों (दक्षिण) के मैदानों से अचानक उठती हैं और प्रमुख [[हिमालय]] (उत्तर) श्रेणी के समानांतर हैं। ये पहाड़ियां हिमालय से घाटियों द्वारा विभाजित हैं।  
 
*कई स्थानों पर ये पहाड़ियाँ 16 किमी चौड़ी हैं और इनकी औसत ऊंचाई 900 से 1200 मीटर है। ये पहाड़ियाँ [[सिंधु नदी|सिंधु]] और [[गंगा]] नदियों (दक्षिण) के मैदानों से अचानक उठती हैं और प्रमुख [[हिमालय]] (उत्तर) श्रेणी के समानांतर हैं। ये पहाड़ियां हिमालय से घाटियों द्वारा विभाजित हैं।  
 
*माना जाता है कि शिवालिक में [[असम]] हिमालय के दक्षिणी गिरिपीठ शामिल हैं। जो पूर्व की ओर 640 किमी दक्षिण [[भूटान]] के पार से [[ब्रह्मपुत्र नदी]] तक विस्तृत हैं।  
 
*माना जाता है कि शिवालिक में [[असम]] हिमालय के दक्षिणी गिरिपीठ शामिल हैं। जो पूर्व की ओर 640 किमी दक्षिण [[भूटान]] के पार से [[ब्रह्मपुत्र नदी]] तक विस्तृत हैं।  
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*शिवालिक कहलाने वाली पर्वतश्रेणी का नाम [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] शब्द से व्युत्पन्न है, जिसका अर्थ है, [[शिव]] से संबंधित। पहले केवल इसी श्रेणी को इस नाम से जाना जाता था, इससे [[हरिद्वार]] में गंगा नदी से पश्चिमोत्तर की ओर [[व्यास नदी]] तक फैले हुए गिरिपीठ शामिल हैं। इस भाग में हर जगह झाड़ीदार जंगल पाए जाते थे, जो अब साफ़ किए जा चुके हैं।  
*पहाड़ियाँ अपरदन का शिकार हो रही हैं। निश्चित समयावधि में आने वाली बाढ़ रेत और गाद को बहाकर निरंतर परिवर्तित होती धाराओं में ले जाती है, जिन्हें 'चोस' कहा जाता है। ये वर्षा के बाद के समय को छोड़कर अक्सर सूखे रहते हैं। पहाड़ियों का नेपाल वाला भाग चुड़िया श्रेणी कहलाता है।   
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*पहाड़ियाँ अपरदन का शिकार हो रही हैं। निश्चित समयावधि में आने वाली बाढ़ रेत और गाद को बहाकर निरंतर परिवर्तित होती धाराओं में ले जाती है, जिन्हें 'चोस' कहा जाता है। ये [[वर्षा]] के बाद के समय को छोड़कर अक्सर सूखे रहते हैं। पहाड़ियों का [[नेपाल]] वाला भाग चुड़िया श्रेणी कहलाता है।   
 
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05:57, 23 अप्रैल 2012 का अवतरण

शिवालिक पहाड़ियाँ भारत के सिक्किम राज्य में तिस्सा नदी से पश्चिम-पश्चिमोत्तर की ओर, नेपाल से पश्चिमोत्तर भारत की ओर और उत्तरी पाकिस्तान की ओर 1600 किमी से अधिक की दूरी तक विस्तृत में स्थित है।

  • शिवालिक पहाड़ियाँ को उपहिमालयी श्रेणी, शिवालिक पर्वतश्रेणी या बाह्य हिमालय भी कहा जाता है।
  • कई स्थानों पर ये पहाड़ियाँ 16 किमी चौड़ी हैं और इनकी औसत ऊंचाई 900 से 1200 मीटर है। ये पहाड़ियाँ सिंधु और गंगा नदियों (दक्षिण) के मैदानों से अचानक उठती हैं और प्रमुख हिमालय (उत्तर) श्रेणी के समानांतर हैं। ये पहाड़ियां हिमालय से घाटियों द्वारा विभाजित हैं।
  • माना जाता है कि शिवालिक में असम हिमालय के दक्षिणी गिरिपीठ शामिल हैं। जो पूर्व की ओर 640 किमी दक्षिण भूटान के पार से ब्रह्मपुत्र नदी तक विस्तृत हैं।
  • शिवालिक कहलाने वाली पर्वतश्रेणी का नाम संस्कृत शब्द से व्युत्पन्न है, जिसका अर्थ है, शिव से संबंधित। पहले केवल इसी श्रेणी को इस नाम से जाना जाता था, इससे हरिद्वार में गंगा नदी से पश्चिमोत्तर की ओर व्यास नदी तक फैले हुए गिरिपीठ शामिल हैं। इस भाग में हर जगह झाड़ीदार जंगल पाए जाते थे, जो अब साफ़ किए जा चुके हैं।
  • पहाड़ियाँ अपरदन का शिकार हो रही हैं। निश्चित समयावधि में आने वाली बाढ़ रेत और गाद को बहाकर निरंतर परिवर्तित होती धाराओं में ले जाती है, जिन्हें 'चोस' कहा जाता है। ये वर्षा के बाद के समय को छोड़कर अक्सर सूखे रहते हैं। पहाड़ियों का नेपाल वाला भाग चुड़िया श्रेणी कहलाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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