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*सुंदर दास [[ग्वालियर]] के ब्राह्मण थे और [[शाहजहाँ]] के दरबार में कविता सुनाया करते थे।  
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'''सुंदर दास''' [[ग्वालियर]] के [[ब्राह्मण]] थे और [[मुग़ल]] बादशाह [[शाहजहाँ]] के दरबार में [[कविता]] सुनाया करते थे। उन्हें बादशाह ने पहले '''कविराय''' की और फिर '''महाकविराय''' की पदवी से सम्मानित किया था।
*सुन्दर दास ने अपने पद में रचना की तिथि इस प्रकार दी है -  
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*सुंदर दास ने संवत 1688 में 'सुंदर श्रृंगार' नामक नायिका भेद का एक ग्रंथ लिखा। अपनी पद में रचना की तिथि इस प्रकार दी है-  
कातिक सुदि सतमी गुरौ, रचे ग्रंथ करि प्रीति
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कातिक सुदि सतमी गुरौ, रचे ग्रंथ करि प्रीति</poem></blockquote>
 
*इसके अतिरिक्त 'सिंहासन बत्तीसी' और 'बारहमासा' नाम की इनकी दो पुस्तकें और कही जाती हैं।  
 
*इसके अतिरिक्त 'सिंहासन बत्तीसी' और 'बारहमासा' नाम की इनकी दो पुस्तकें और कही जाती हैं।  
 
*[[यमक अलंकार|यमक]] और [[अनुप्रास अलंकार|अनुप्रास]] की ओर इनकी कुछ विशेष प्रवृत्ति जान पड़ती है।  
 
*[[यमक अलंकार|यमक]] और [[अनुप्रास अलंकार|अनुप्रास]] की ओर इनकी कुछ विशेष प्रवृत्ति जान पड़ती है।  
 
*इनकी रचना शब्द चमत्कारपूर्ण है -
 
*इनकी रचना शब्द चमत्कारपूर्ण है -
काके गए बसन पलटि आए बसन सु,
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<blockquote><poem>काके गए बसन पलटि आए बसन सु,
 
मेरो कछु बस न रसन उर लागे हौ।
 
मेरो कछु बस न रसन उर लागे हौ।
 
भौंहैं तिरछौहैं कवि सुंदर सुजान सोहैं,
 
भौंहैं तिरछौहैं कवि सुंदर सुजान सोहैं,
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परसौ वे पाय निसि जाके अनुरागे हौ।
 
परसौ वे पाय निसि जाके अनुरागे हौ।
 
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Disamb2.jpg सुंदरदास एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- सुंदरदास (बहुविकल्पी)

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सुंदर दास ग्वालियर के ब्राह्मण थे और मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के दरबार में कविता सुनाया करते थे। उन्हें बादशाह ने पहले कविराय की और फिर महाकविराय की पदवी से सम्मानित किया था।

  • सुंदर दास ने संवत 1688 में 'सुंदर श्रृंगार' नामक नायिका भेद का एक ग्रंथ लिखा। अपनी पद में रचना की तिथि इस प्रकार दी है-

संवत् सोरह सै बरस, बीते अठतर सीति।
कातिक सुदि सतमी गुरौ, रचे ग्रंथ करि प्रीति

  • इसके अतिरिक्त 'सिंहासन बत्तीसी' और 'बारहमासा' नाम की इनकी दो पुस्तकें और कही जाती हैं।
  • यमक और अनुप्रास की ओर इनकी कुछ विशेष प्रवृत्ति जान पड़ती है।
  • इनकी रचना शब्द चमत्कारपूर्ण है -

काके गए बसन पलटि आए बसन सु,
मेरो कछु बस न रसन उर लागे हौ।
भौंहैं तिरछौहैं कवि सुंदर सुजान सोहैं,
कछू अलसौहैं गौंहैं, जाके रस पागे हौ
परसौं मैं पाय हुते परसौं मैं पाय गहि,
परसौ वे पाय निसि जाके अनुरागे हौ।
कौन बनिता के हौ जू कौन बनिता के हौ सु,
कौन बनिता के बनि, ताके संग जागे हौ


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

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