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− | '''सूर्यमल्ल मिश्रण''' [[राजस्थान]] के हाड़ा शासक महाराव रामसिंह के प्रसिद्ध दरबारी [[कवि]] थे। इनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना '[[वंश भास्कर]]' है, जिसमें [[बूँदी ज़िला|बूँदी]] के [[चौहान वंश|चौहान]] शासकों का इतिहास है। इनके द्वारा रचित अन्य ग्रंथ 'वीर सतसई', 'बलवंत विलास' व 'छंद मयूख' हैं। [[वीर रस]] के इस कवि को रसावतार कहा जाता है। सूर्यमल मिश्रण को आधुनिक राजस्थानी काव्य के नवजागरण का पुरोधा कवि माना जाता है। ये अपने अपूर्व [[ग्रंथ]] 'वीर सतसई' के प्रथम [[दोहा|दोहे]] में ही [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ी]] दासता के | + | {{सूचना बक्सा साहित्यकार |
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+ | '''सूर्यमल्ल मिश्रण''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Surajmal Misrana'', जन्म- 1815 ई., [[बूँदी राजस्थान|बूँदी]], [[राजस्थान]]; मृत्यु- [[1863]] ई.]] [[राजस्थान]] के हाड़ा शासक महाराव रामसिंह के प्रसिद्ध दरबारी [[कवि]] थे। इनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना '[[वंश भास्कर]]' है, जिसमें [[बूँदी ज़िला|बूँदी]] के [[चौहान वंश|चौहान]] शासकों का इतिहास है। इनके द्वारा रचित अन्य ग्रंथ 'वीर सतसई', 'बलवंत विलास' व 'छंद मयूख' हैं। [[वीर रस]] के इस कवि को रसावतार कहा जाता है। सूर्यमल मिश्रण को आधुनिक राजस्थानी काव्य के नवजागरण का पुरोधा कवि माना जाता है। ये अपने अपूर्व [[ग्रंथ]] 'वीर सतसई' के प्रथम [[दोहा|दोहे]] में ही [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ी]] दासता के विरुद्ध बिगुल बजाते हुए प्रतीत हुए।<ref>{{cite web |url= http://www.rajasthanstudies.com/2013/08/important-writers-related-to-literature.html|title= राजस्थानी साहित्य से सम्बंधित प्रमुख साहित्यकार|accessmonthday= 05 अगस्त|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=राजस्थान अध्ययन|language= हिन्दी}}</ref> | ||
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− | *सूर्यमल्ल मिश्रण की छ: पत्नियाँ | + | *सूर्यमल्ल मिश्रण की छ: पत्नियाँ थीं, जिनके नाम थे- 'दोला', 'सुरक्षा', 'विजया', 'यशा', 'पुष्पा' और 'गोविंदा'। संतानहीन होने के कारण इन्होंने मुरारीदान को गोद ले कर अपना उत्तराधिकारी बनाया था। |
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− | [[बूँदी राजस्थान|बूँदी]] नरेश महाराव रामसिंह के आदेशानुसार संवत 1897 में इन्होंने '[[वंश भास्कर]]' की रचना की। इस [[ग्रंथ]] में मुख्यत: बूँदी राज्य का इतिहास वर्णित है, किंतु यथाप्रसंग अन्य राजस्थानी रियासतों के व्यक्तियों और प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओं की भी चर्चा की गई है। युद्ध-वर्णन में जैसी सजीवता इस ग्रंथ में है, वैसी अन्यत्र दुर्लभ है। 'वंश भास्कर' को पूर्ण करने का कार्य कवि सूर्यमल के दत्तक पुत्र मुरारीदान ने किया था। राजस्थानी साहित्य में बहुचर्चित इस ग्रंथ की [[टीका]] कविवर बारहठ कृष्णसिंह ने की है। 'वंश भास्कर' के कतिपय स्थल भाषाई क्लिष्टता के कारण बोधगम्य नहीं है, फिर भी यह एक अनूठा काव्य-ग्रंथ है। इनकी 'वीरसतसई' भी कवित्व तथा [[राजपूत]] शौर्य के चित्रण की दृष्टि से उत्कृष्ट रचना है। | + | [[बूँदी राजस्थान|बूँदी]] नरेश महाराव रामसिंह के आदेशानुसार [[संवत]] 1897 में इन्होंने '[[वंश भास्कर]]' की रचना की। इस [[ग्रंथ]] में मुख्यत: बूँदी राज्य का इतिहास वर्णित है, किंतु यथाप्रसंग अन्य राजस्थानी रियासतों के व्यक्तियों और प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओं की भी चर्चा की गई है। युद्ध-वर्णन में जैसी सजीवता इस ग्रंथ में है, वैसी अन्यत्र दुर्लभ है। 'वंश भास्कर' को पूर्ण करने का कार्य कवि सूर्यमल के दत्तक पुत्र मुरारीदान ने किया था। राजस्थानी साहित्य में बहुचर्चित इस ग्रंथ की [[टीका]] कविवर बारहठ कृष्णसिंह ने की है। 'वंश भास्कर' के कतिपय स्थल भाषाई क्लिष्टता के कारण बोधगम्य नहीं है, फिर भी यह एक अनूठा काव्य-ग्रंथ है। इनकी 'वीरसतसई' भी कवित्व तथा [[राजपूत]] शौर्य के चित्रण की दृष्टि से उत्कृष्ट रचना है। |
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महाराज बूँदी के अतिरिक्त राजस्थान और [[मालवा]] के अन्य राजाओं ने भी सूर्यमल्ल मिश्रण का यथेष्ट सम्मान किया। सूर्यमल्ल मिश्रण ने '[[वंश भास्कर]]' नामक अपनी पिंगल काव्य रचना में बूँदी राज्य के विस्तृत इतिहास के साथ-साथ उत्तरी भारत का इतिहास तथा राजस्थान में [[मराठा]] विरोधी भावना का उल्लेख किया है। वे चारणों की मिश्रण शाखा से संबद्ध थे। वे वस्तुत: राष्ट्रीय-विचारधारा तथा भारतीय संस्कृति के कवि थे। | महाराज बूँदी के अतिरिक्त राजस्थान और [[मालवा]] के अन्य राजाओं ने भी सूर्यमल्ल मिश्रण का यथेष्ट सम्मान किया। सूर्यमल्ल मिश्रण ने '[[वंश भास्कर]]' नामक अपनी पिंगल काव्य रचना में बूँदी राज्य के विस्तृत इतिहास के साथ-साथ उत्तरी भारत का इतिहास तथा राजस्थान में [[मराठा]] विरोधी भावना का उल्लेख किया है। वे चारणों की मिश्रण शाखा से संबद्ध थे। वे वस्तुत: राष्ट्रीय-विचारधारा तथा भारतीय संस्कृति के कवि थे। | ||
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− | ऐश्वर्य तथा विलासिता का उपभोग करने वाले कवि सूर्यमल्ल मिश्रण की ख़ास विशेषता यह थी कि इनके काव्य पर इसका विपरीत प्रभाव नहीं पड़ सका है। इनकी | + | ऐश्वर्य तथा विलासिता का उपभोग करने वाले कवि सूर्यमल्ल मिश्रण की ख़ास विशेषता यह थी कि इनके काव्य पर इसका विपरीत प्रभाव नहीं पड़ सका है। इनकी श्रृंगारपरक रचनाएँ भी संयमित एवं मर्यादित हैं। [[विक्रम संवत]] 1920 ([[1863]] ई.) में इनका निधन हो गया। |
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07:58, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
सूर्यमल्ल मिश्रण
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पूरा नाम | सूर्यमल्ल मिश्रण |
जन्म | संवत 1872 |
जन्म भूमि | बूँदी ज़िला, राजस्थान |
मृत्यु | संवत 1920 |
अभिभावक | पिता- चंडीदान |
पति/पत्नी | इनकी छ: पत्नियाँ थीं, जिनके नाम थे- 'दोला', 'सुरक्षा', 'विजया', 'यशा', 'पुष्पा' और 'गोविंदा'। |
कर्म भूमि | भारत |
मुख्य रचनाएँ | 'वंशभास्कर', 'वीर सतसई', 'बलवंत विलास' व 'छंद मयूख'। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | सूर्यमल्ल मिश्रण ने 'वंश भास्कर' नामक अपनी पिंगल काव्य रचना में बूँदी राज्य के विस्तृत इतिहास के साथ-साथ उत्तरी भारत का इतिहास तथा राजस्थान में मराठा विरोधी भावना का उल्लेख किया है। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
सूर्यमल्ल मिश्रण (अंग्रेज़ी: Surajmal Misrana, जन्म- 1815 ई., बूँदी, राजस्थान; मृत्यु- 1863 ई.]] राजस्थान के हाड़ा शासक महाराव रामसिंह के प्रसिद्ध दरबारी कवि थे। इनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना 'वंश भास्कर' है, जिसमें बूँदी के चौहान शासकों का इतिहास है। इनके द्वारा रचित अन्य ग्रंथ 'वीर सतसई', 'बलवंत विलास' व 'छंद मयूख' हैं। वीर रस के इस कवि को रसावतार कहा जाता है। सूर्यमल मिश्रण को आधुनिक राजस्थानी काव्य के नवजागरण का पुरोधा कवि माना जाता है। ये अपने अपूर्व ग्रंथ 'वीर सतसई' के प्रथम दोहे में ही अंग्रेज़ी दासता के विरुद्ध बिगुल बजाते हुए प्रतीत हुए।[1]
जन्म तथा शिक्षा
सूर्यमल्ल मिश्रण का जन्म राजस्थान में बूँदी ज़िले के एक प्रतिष्ठित परिवार में संवत 1872 (1815 ई.) में हुआ था। बूँदी के तत्कालीन महाराज विष्णु सिंह ने इनके पिता कविवर चंडीदान को एक गाँव, लाखपसाव तथा कविराजा की उपाधि प्रदान की थी। सूर्यमल्ल मिश्रण अपनी बाल्यावस्था से ही प्रतिभा संपन्न थे। अध्ययन में विशेष रुचि होने के कारण संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, पिंगल, डिंगल आदि कई भाषाओं में इन्हें दक्षता प्राप्त हो गई थी। कवित्व शक्ति की विलक्षणता के कारण अल्पकाल में ही इनकी ख्याति चारों ओर फैल गई।
- सूर्यमल्ल मिश्रण की छ: पत्नियाँ थीं, जिनके नाम थे- 'दोला', 'सुरक्षा', 'विजया', 'यशा', 'पुष्पा' और 'गोविंदा'। संतानहीन होने के कारण इन्होंने मुरारीदान को गोद ले कर अपना उत्तराधिकारी बनाया था।
रचना
बूँदी नरेश महाराव रामसिंह के आदेशानुसार संवत 1897 में इन्होंने 'वंश भास्कर' की रचना की। इस ग्रंथ में मुख्यत: बूँदी राज्य का इतिहास वर्णित है, किंतु यथाप्रसंग अन्य राजस्थानी रियासतों के व्यक्तियों और प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओं की भी चर्चा की गई है। युद्ध-वर्णन में जैसी सजीवता इस ग्रंथ में है, वैसी अन्यत्र दुर्लभ है। 'वंश भास्कर' को पूर्ण करने का कार्य कवि सूर्यमल के दत्तक पुत्र मुरारीदान ने किया था। राजस्थानी साहित्य में बहुचर्चित इस ग्रंथ की टीका कविवर बारहठ कृष्णसिंह ने की है। 'वंश भास्कर' के कतिपय स्थल भाषाई क्लिष्टता के कारण बोधगम्य नहीं है, फिर भी यह एक अनूठा काव्य-ग्रंथ है। इनकी 'वीरसतसई' भी कवित्व तथा राजपूत शौर्य के चित्रण की दृष्टि से उत्कृष्ट रचना है।
सम्मान
महाराज बूँदी के अतिरिक्त राजस्थान और मालवा के अन्य राजाओं ने भी सूर्यमल्ल मिश्रण का यथेष्ट सम्मान किया। सूर्यमल्ल मिश्रण ने 'वंश भास्कर' नामक अपनी पिंगल काव्य रचना में बूँदी राज्य के विस्तृत इतिहास के साथ-साथ उत्तरी भारत का इतिहास तथा राजस्थान में मराठा विरोधी भावना का उल्लेख किया है। वे चारणों की मिश्रण शाखा से संबद्ध थे। वे वस्तुत: राष्ट्रीय-विचारधारा तथा भारतीय संस्कृति के कवि थे।
निधन
ऐश्वर्य तथा विलासिता का उपभोग करने वाले कवि सूर्यमल्ल मिश्रण की ख़ास विशेषता यह थी कि इनके काव्य पर इसका विपरीत प्रभाव नहीं पड़ सका है। इनकी श्रृंगारपरक रचनाएँ भी संयमित एवं मर्यादित हैं। विक्रम संवत 1920 (1863 ई.) में इनका निधन हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ राजस्थानी साहित्य से सम्बंधित प्रमुख साहित्यकार (हिन्दी) राजस्थान अध्ययन। अभिगमन तिथि: 05 अगस्त, 2014।
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