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'''जीवनानन्द दास''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Jibanananda Das'' ; जन्म- [[17 फ़रवरी]], [[1899]], [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]]; मृत्यु- [[22 अक्टूबर]], [[1954]], [[कोलकाता]], [[पश्चिम बंगाल]]) [[बांग्ला भाषा]] के प्रसिद्ध [[कवि]] और लेखक थे। वे ऐसे बांग्ला कवि थे, जिन्होंने [[कविता]] में वर्णनात्मक शैली के स्थापत्य का सूत्रपात किया। उनके [[उपन्यास]] और [[कहानी|कहानियाँ]] बांग्ला क्षेत्र के लोगों के बीच ख़ास स्थान रखते हैं। उन्हें [[1955]] में मरणोपरांत श्रेष्ठ कविता के लिए '[[साहित्य अकादमी पुरस्कार]]' से सम्मानित किया गया था। जीवनानन्द दास जी की कविता ने [[रवींद्रनाथ टैगोर|रवींद्रनाथ]] के बाद बांग्ला समाज की कई पीढ़ियों को चमत्कृत किया। उनकी कविता 'बनलता सेन' तो मानो अनिवार्य रूप से
 
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जीवनानंद दास ने [[बांग्ला भाषा]] में वर्णनात्मक शैली के स्थापत्य का सूत्रपात किया, जिसने एकरैखिक प्रगतिशील समय को उलट दिया। [[1940]] में उन्होंने’पैराडाइम’ शीर्षक से ‘परिचय’ [[पत्रिका]] में एक [[कविता]] लिखी थी, जिसमें तार्किक विचलन, असंतुलन, व्यंग्य, उल्लास, आवेग, बहुरैखिकता, गत्यात्मक बिम्ब, केंद्र रहितता सहित उत्तर आधुनिक पाठ की सभी विशेषताएँ थीं। वे पहले बांग्ला [[कवि]] थे, जिन्होंने ‘विरोधाभासों’ का अतिशय इस्तेमाल किया था। जीवनानंद दास के समकालीन कवि संजय भट्टाचार्य ने कहा था “इस इनडिटरमिनिजम की परिस्थिति में ’रीजन’ का महत्त्व पहले जैसा नहीं रहा, साइन्टिफिक वर्ल्ड भी मिस्टिक वर्ल्ड की ओर जा रहा है।
  
जीवनानंद दास के [[उपन्यास]] और कहानियाँ उनके जीवन काल में नहीं छपीं, क्योंकि वे स्थापत्य, व्याकरणिक और वैचारिक दृष्टि से बौद्धिक मठाधीशों द्वारा प्रवर्तित सभी पूर्व धारणाओं के परे जाती थीं। ऐसे आलोचक और विद्वान् हैं जो यह बताते हैं कि ये आख्यान उपन्यास और कहानियों की कोटि में नहीं आते। इनमें से कुछ जीवनानंद दास की कविताओं के भंडार से ‘वास्तविक कविताओं’ की सही संख्या के बारे में गंभीरता से बात करते हैं। वस्तुत: औपनिवेशिक कैनन ने ही [[रवींद्रनाथ टैगोर|रवींद्रनाथ]] की कविताओं में से भी वास्तविक कविताओं की संख्या गिनने के लिए कुछ आलोचकों को प्रेरित किया है।<ref>{{cite web |url= https://books.google.co.in/books?id=rCCtnvRCYtMC&lpg=PA31&ots=kg8zMsGFls&dq=%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%82%E0%A4%A6+%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8&pg=PA31#v=onepage&q=%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%82%E0%A4%A6%20%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8&f=false|title=जीवनानन्द दास|accessmonthday= 04 फरवरी|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= गूगल बुक्स|language= हिन्दी}}</ref>
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जीवनानंद दास के उपन्यास और कहानियाँ उनके जीवन काल में नहीं छपीं, क्योंकि वे स्थापत्य, व्याकरणिक और वैचारिक दृष्टि से बौद्धिक मठाधीशों द्वारा प्रवर्तित सभी पूर्व धारणाओं के परे जाती थीं। ऐसे आलोचक और विद्वान् हैं जो यह बताते हैं कि ये आख्यान [[उपन्यास]] और कहानियों की कोटि में नहीं आते। इनमें से कुछ जीवनानंद दास की कविताओं के भंडार से ‘वास्तविक कविताओं’ की सही संख्या के बारे में गंभीरता से बात करते हैं। वस्तुत: औपनिवेशिक कैनन ने ही [[रवींद्रनाथ टैगोर|रवींद्रनाथ]] की कविताओं में से भी वास्तविक कविताओं की संख्या गिनने के लिए कुछ आलोचकों को प्रेरित किया है।<ref>{{cite web |url= https://books.google.co.in/books?id=rCCtnvRCYtMC&lpg=PA31&ots=kg8zMsGFls&dq=%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%82%E0%A4%A6+%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8&pg=PA31#v=onepage&q=%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%82%E0%A4%A6%20%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8&f=false|title=जीवनानन्द दास|accessmonthday= 04 फरवरी|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= गूगल बुक्स|language= हिन्दी}}</ref>
  
 
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बांग्ला कविता तथा उपन्यास आदि के लेखन में विशेष योगदान देने वाले जीवनानन्द दास जी का निधन [[22 अक्टूबर]], [[1954]] को [[कोलकाता]], [[पश्चिम बंगाल]] में हुआ।
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05:28, 22 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

जीवनानन्द दास
जीवनानन्द दास
पूरा नाम जीवनानन्द दास
जन्म 17 फ़रवरी, 1899
जन्म भूमि बंगाल
मृत्यु 22 अक्टूबर, 1954
मृत्यु स्थान कोलकाता, पश्चिम बंगाल
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र काव्य तथा उपन्यास लेखन
मुख्य रचनाएँ 'बनलता सेन', 'झरा पालोक', 'धूसर पाण्दुलिपि', 'सातटि तारार तिमिर', 'मानव बिहंगम', 'माल्यवान', 'कल्याणी', 'निरूपमयात्रा' आदि।
भाषा बांग्ला
प्रसिद्धि बांग्ला कवि तथा लेखक
विशेष योगदान जीवनानंद दास ने बांग्ला भाषा में वर्णनात्मक शैली के स्थापत्य का सूत्रपात किया, जिसने एकरैखि प्रगतिशील समय को उलट दिया।
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख बांग्ला भाषा, बांग्ला साहित्य, बांग्ला लिपि
अन्य जानकारी आधुनिक बांग्ला कविता को जीवनानन्द दास का योगदान अप्रतिम है। प्रकृति से उनके गहरे तादात्म्य ने बांग्ला कविता को कई अनूठे बिंब दिये।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

जीवनानन्द दास (अंग्रेज़ी: Jibanananda Das ; जन्म- 17 फ़रवरी, 1899, बंगाल; मृत्यु- 22 अक्टूबर, 1954, कोलकाता, पश्चिम बंगाल) बांग्ला भाषा के प्रसिद्ध कवि और लेखक थे। वे ऐसे बांग्ला कवि थे, जिन्होंने कविता में वर्णनात्मक शैली के स्थापत्य का सूत्रपात किया। उनके उपन्यास और कहानियाँ बांग्ला क्षेत्र के लोगों के बीच ख़ास स्थान रखते हैं। उन्हें 1955 में मरणोपरांत श्रेष्ठ कविता के लिए 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। जीवनानन्द दास जी की कविता ने रवींद्रनाथ के बाद बांग्ला समाज की कई पीढ़ियों को चमत्कृत किया। उनकी कविता 'बनलता सेन' तो मानो अनिवार्य रूप से कंठस्थ की जाती रही है।

जन्म

जीवनानन्द दास जी का जन्म 11 फ़रवरी, सन 1899 को ब्रिटिशकालीन बंगाल के बारीसाल में हुआ था। वे एक ब्राह्मण परिवार से सम्बन्ध रखते थे।

कवि तथा गद्यकार

जीवनानन्द दास की कविता ने रवींद्रनाथ के बाद बांग्लाभाषी समाज की कई पीढ़ियों को चमत्कृत किया और उनकी कविता 'बनलता सेन' तो मानों अनिवार्य रूप से कंठस्थ की जाती रही है। आधुनिक बांग्ला कविता को जीवनानन्द दास का योगदान अप्रतिम है। प्रकृति से उनके गहरे तादात्म्य ने बांग्ला कविता को कई अनूठे बिंब दिये। जीवनानन्द दास समर्थ गद्यकार भी थे। उनकी मृत्यु के बाद उनके लिखे कई उपन्यास प्रकाश में आये। कहानियाँ भी उन्होंने लिखी थीं। जब 1955 में साहित्य अकादमी ने स्वीकृत भारतीय भाषाओं में से प्रत्येक की सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक कृति पर पुरस्कारों की स्थापना की तो बांग्ला में पुरस्कार के लिए चुनी जाने वाली पुस्तक जीवनानन्द दास की श्रेष्ठ कविता ही थी। अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद में प्रस्तुत इस विनिबंध का यह तीसरा संस्करण है, और इसमें दी गई कविताएँ अंग्रेज़ी अनुवादों से न होकर मूल बांग्ला से ही प्रयाग शुक्ल द्वारा अनुदित की गई हैं। इसका तीसरा संशोधित-परिवर्द्धित संस्करण इस बात का भी प्रमाण है कि इसे हिन्दी-जगत में पसंद किया गया है।[1]

वर्णनात्मक शैली का सूत्रपात

जीवनानंद दास ने बांग्ला भाषा में वर्णनात्मक शैली के स्थापत्य का सूत्रपात किया, जिसने एकरैखिक प्रगतिशील समय को उलट दिया। 1940 में उन्होंने’पैराडाइम’ शीर्षक से ‘परिचय’ पत्रिका में एक कविता लिखी थी, जिसमें तार्किक विचलन, असंतुलन, व्यंग्य, उल्लास, आवेग, बहुरैखिकता, गत्यात्मक बिम्ब, केंद्र रहितता सहित उत्तर आधुनिक पाठ की सभी विशेषताएँ थीं। वे पहले बांग्ला कवि थे, जिन्होंने ‘विरोधाभासों’ का अतिशय इस्तेमाल किया था। जीवनानंद दास के समकालीन कवि संजय भट्टाचार्य ने कहा था “इस इनडिटरमिनिजम की परिस्थिति में ’रीजन’ का महत्त्व पहले जैसा नहीं रहा, साइन्टिफिक वर्ल्ड भी मिस्टिक वर्ल्ड की ओर जा रहा है।

जीवनानंद दास के उपन्यास और कहानियाँ उनके जीवन काल में नहीं छपीं, क्योंकि वे स्थापत्य, व्याकरणिक और वैचारिक दृष्टि से बौद्धिक मठाधीशों द्वारा प्रवर्तित सभी पूर्व धारणाओं के परे जाती थीं। ऐसे आलोचक और विद्वान् हैं जो यह बताते हैं कि ये आख्यान उपन्यास और कहानियों की कोटि में नहीं आते। इनमें से कुछ जीवनानंद दास की कविताओं के भंडार से ‘वास्तविक कविताओं’ की सही संख्या के बारे में गंभीरता से बात करते हैं। वस्तुत: औपनिवेशिक कैनन ने ही रवींद्रनाथ की कविताओं में से भी वास्तविक कविताओं की संख्या गिनने के लिए कुछ आलोचकों को प्रेरित किया है।[2]

  • बांग्ला कवि जीवनानन्द दास ने कहा था कि- "कविता लिखने वाले बहुतेरे होते हैं, पर सभी कवि नहीं होते।"[3]

वनलता सेन

कवि जीवनानंद दास ने आज़ादी से पहले अपनी एक कविता में ‘वनलता सेन’ के रूप में एक ऐसी शांतिदायिनी युवती को रचा, जो कवि को कहीं मिली थी। ‘चारों ओर बिछा जीवन के ही समुद्र का फेन / शांति किसी ने दी तो वह थी वनलता सेन।‘ यही वनलता सेन आगे चलकर आलोक श्रीवास्‍तव से लेकर अनेक कवियों के यहां विचरण करती नज़र आती है।[4]

जीवनानन्द की रचनाएँ
काव्य ग्रन्थ
  1. झरा पालोक (1927)
  2. धूसर पाण्दुलिपि (1936)
  3. वनलता सेन (1942)
  4. महापृथिबी (1944)
  5. सातटि तारार तिमिर (1948)
  6. रूपसी बांगल (1957)
  7. श्रेष्ठो कविता (1958)
  8. बेला अबेला कालबेला (1961)
  9. सुदर्शना (1973)
  10. मानव बिहंगम (1979)
  11. आलो पृथिबी (1981)
  12. अप्रकाशितो एकान्नो (1999)
उपन्यास
  1. माल्यवान
  2. पूर्णीमा
  3. कल्याणी
  4. चारजोन
  5. बिभाव
  6. मृणाल
  7. निरूपमयात्रा
  8. कारुवासना
  9. जीवनप्रणाली
  10. विराज
  11. प्रेतिनीर
  12. सुतीर्थो
  13. बासमोतीर उपाख्यान

निधन

बांग्ला कविता तथा उपन्यास आदि के लेखन में विशेष योगदान देने वाले जीवनानन्द दास जी का निधन 22 अक्टूबर, 1954 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जीवनानन्द दास-भारतीय सहित्य के निर्माता (हिन्दी) एक्सोटिक इण्डिया। अभिगमन तिथि: 04 फरवरी, 2015।
  2. जीवनानन्द दास (हिन्दी) गूगल बुक्स। अभिगमन तिथि: 04 फरवरी, 2015।
  3. अतीत पर रोशनी (हिन्दी) हिन्दुस्तान। अभिगमन तिथि: 04 फरवरी, 2015।
  4. लियो री बजंता ढोल (हिन्दी) जानकीपुल। अभिगमन तिथि: 04 फरवरी, 2015।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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