सरन गये को को न उबार्‌यो -सूरदास

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:05, 1 अगस्त 2017 का अवतरण (Text replacement - " महान " to " महान् ")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"
सरन गये को को न उबार्‌यो -सूरदास
सूरदास
कवि महाकवि सूरदास
जन्म संवत 1535 वि.(सन 1478 ई.)
जन्म स्थान रुनकता
मृत्यु 1583 ई.
मृत्यु स्थान पारसौली
मुख्य रचनाएँ सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सूरदास की रचनाएँ

सरन गये को को न उबार्‌यौ।[1]
जब जब भीर[2] परीं संतति पै, चक्र सुदरसन तहां संभार्‌यौ।[3]
महाप्रसाद भयौ अंबरीष[4] कों, दुरवासा[5] को क्रोध निवार्‌यो॥
ग्वालिन हैत धर्‌यौ गोवर्धन, प्रगट इन्द्र कौ गर्व प्रहार्‌यौ॥[6]
कृपा करी प्रहलाद भक्त पै, खम्भ फारि हिरनाकुस मार्‌यौ।
नरहरि[7] रूप धर्‌यौ करुनाकर, छिनक माहिं उर नखनि[8] बिदार्‌यौ।[9]
ग्राह-ग्रसित गज कों जल बूड़त, नाम लेत वाकौ दु:ख टार्‌यौ॥
सूर स्याम बिनु और करै को, रंगभूमि[10] में कंस पछार्‌यौ॥

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रक्षा की
  2. संकट
  3. हाथ में लिया
  4. एक हरि भक्त राजा
  5. दुर्वासा नामके एक महान् क्रोधी ऋषि
  6. नष्ट किया
  7. नृसिंह
  8. नाखूनों से
  9. चीर फाड़ डाला
  10. सभा स्थल

संबंधित लेख