"तमसा नदी" के अवतरणों में अंतर

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*रघुवंश<ref>रघुवंश 9, 72</ref> में भी तमसा को अयोध्या के निकट कहा गया है-
 
*रघुवंश<ref>रघुवंश 9, 72</ref> में भी तमसा को अयोध्या के निकट कहा गया है-
 
<blockquote>'तमसां प्राप नदीं तुरंगमेण।'</blockquote>
 
<blockquote>'तमसां प्राप नदीं तुरंगमेण।'</blockquote>
*[[भवभूति]] ने उत्तररामचरित में तमसा का सुन्दर वर्णन किया है और वाल्मीकि का आश्रम, कालिदास की भांति ही तमसा नदी के तट पर बताया है-
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*[[भवभूति]] ने उत्तररामचरित में तमसा का सुन्दर वर्णन किया है और [[वाल्मीकि आश्रम|वाल्मीकि का आश्रम]], कालिदास की भांति ही तमसा नदी के तट पर बताया है-
 
<blockquote>'अथ स ब्रह्मर्षिरेकदा माध्यं दिनसवनायनदीं तमसामनुप्रपन्न:।'</blockquote>
 
<blockquote>'अथ स ब्रह्मर्षिरेकदा माध्यं दिनसवनायनदीं तमसामनुप्रपन्न:।'</blockquote>
 
*तमसा नदी के तट पर ही वाल्मीकि ने [[निषाद]] द्वारा मारे जाते हुए क्रोंच को देखकर करुणार्द्र स्वरों में अनजाने में ही [[संस्कृत]] लोकिक साहित्य के प्रथम [[श्लोक]] की रचना की थी, जिससे [[रामायण]] की कथा का सूत्रपात हुआ। [[तुलसीदास]] ने तमसा का वर्णन [[राम]] की वनयात्रा तथा [[भरत]] के [[चित्रकूट]] की यात्रा के प्रसंग में किया है-
 
*तमसा नदी के तट पर ही वाल्मीकि ने [[निषाद]] द्वारा मारे जाते हुए क्रोंच को देखकर करुणार्द्र स्वरों में अनजाने में ही [[संस्कृत]] लोकिक साहित्य के प्रथम [[श्लोक]] की रचना की थी, जिससे [[रामायण]] की कथा का सूत्रपात हुआ। [[तुलसीदास]] ने तमसा का वर्णन [[राम]] की वनयात्रा तथा [[भरत]] के [[चित्रकूट]] की यात्रा के प्रसंग में किया है-

10:43, 29 अक्टूबर 2014 का अवतरण

तमसा नदी अयोध्या (उत्तर प्रदेश) के निकट बहने वाली एक छोटी नदी, जिसका उल्लेख रामायण में है। वन को जाते समय श्रीराम, लक्ष्मण और सीता ने प्रथम रात्रि तमसा नदी के तीर पर ही बिताई थी-

'ततस्तुतमसातींर रम्यमाश्रित्य राघव:, सीतामुद्वीक्ष्य सौमित्रमिदंवचनमव्रबीत्। इयमद्य निशापूर्वा सौमित्रे प्रहिता वनं वनवासस्य भद्रंते न चोत्कंठितुमर्हसि'[1]

पौराणिक उल्लेख

वाल्मीकि रामायण, अयोध्याकांड[2] आदि में भी तमसा नदी का उल्लेख है। अयोध्याकांड[3] में वाल्मीकि ने तमसा को (शीघ्रगामाकुलवर्ता तमसामतरन्नदीम्) शीघ्र प्रवाहिनी तथा भंवरों वाली गहरी नदी कहा है। कालिदास ने 'रघुवंश'[4] में, तपस्वी श्रवण की मृत्यु तमसा के तट पर वर्णित की है। उन्होंने तमसा के तीर पर तपस्वियों के आश्रमों का भी उल्लेख किया है, किंतु वाल्मीकि रामायण, अयोध्याकांड[5] में इस दुर्घटना का सरयू नदी के तट पर उल्लेख किया गया है- 'अपश्यनिपुणा तीरे सरय्वास्तापसं हतम्, अवकीर्णजटाभारं प्रविद्धकलशोदकम्।'

वास्तव में सरयू और तमसा दोनों ही नदियाँ अयोध्या के निकट कुछ दूर तक पास ही बहती हैं। रघुवंश[6] के वर्णन में विदित होता है कि वाल्मीकि का आश्रम, जहाँ राम द्वारा निर्वासित सीता रहीं थीं, तमसा के तट पर स्थित था-

'अशून्यतीरां मुनिसंनिवेशैस्तमोपर्हत्रीं तमसामवगाह्म, तत्सैकतोत्संगबलिक्रियाभि संपत्स्यते ते मनस: प्रसाद:।'

'त्रतुषु तेन विसर्जितमौलिना भुज समाहृत दिग्वसुनाकृत: कनकयूपसमृच्छयशोभिनो वितमसातमसा सरयूतटा:।'

  • रघुवंश[9] में भी तमसा को अयोध्या के निकट कहा गया है-

'तमसां प्राप नदीं तुरंगमेण।'

'अथ स ब्रह्मर्षिरेकदा माध्यं दिनसवनायनदीं तमसामनुप्रपन्न:।'

  • तमसा नदी के तट पर ही वाल्मीकि ने निषाद द्वारा मारे जाते हुए क्रोंच को देखकर करुणार्द्र स्वरों में अनजाने में ही संस्कृत लोकिक साहित्य के प्रथम श्लोक की रचना की थी, जिससे रामायण की कथा का सूत्रपात हुआ। तुलसीदास ने तमसा का वर्णन राम की वनयात्रा तथा भरत के चित्रकूट की यात्रा के प्रसंग में किया है-

'तमसा तीर निवास किय, प्रथम दिवस रघुनाथ' तथा 'तमसा प्रथम दिवस करिवासू, दूसर गोमती तीर निवासू।'

आधुनिक स्थिति

आजकल तमसा नदी अयोध्या (फैजाबाद ज़िला, उत्तर प्रदेश) से प्राय: 12 मील दक्षिण में बहती हुई लगभग 36 मील की यात्रा के पश्चात अकबरपुर के पास बिस्वी नदी में मिल जाती है। इस स्थान के पश्चात संयुक्त नदी का नदी का नाम टौंस हो जाता है, जो तमसा का ही अपभ्रंश है। तमसा नदी पर अयोध्या से कुछ दूर पर वह स्थान बताया जाता है, जहाँ श्रवण की मृत्यु हुई थी। अयोध्या से प्राय: 12 मील दूर तरडीह नामक ग्राम है, जहाँ स्थानीय किवदंती के अनुसार श्रीराम ने वनवास यात्रा के समय तमसा को पार किया था। वह घाट आज भी रामचौरा नाम से प्रख्यात है। टौंस ज़िला, आजमगढ़ में बहती हुई बलिया के पश्चिम में गंगा में मिल जाती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वाल्मीकि रामायण, अयोध्याकांड 46, 1-2
  2. अयोध्याकांड 45, 32-33;46, 16;46, 28
  3. अयोध्याकांड 46, 28
  4. 'रघुवंश' 9, 72-75
  5. अयोध्याकांड 63, 36
  6. रघुवंश 14, 76
  7. रघुवंश 14, 52
  8. रघुवंश 9, 20
  9. रघुवंश 9, 72

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