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भागीरथी नदी के सम्बन्ध में एक कथा विश्वविख्यात है। भागीरथ की तपस्या के फलस्वरुप गंगा के अवतरण की कथा <ref>वाल्मीकि बालकाण्ड 38 से 44 अध्याय तक</ref> है। कथा के अंत में गंगा के भागीरथी नाम का उल्लेख है-<ref>बालकाण्ड44,6</ref>
 
भागीरथी नदी के सम्बन्ध में एक कथा विश्वविख्यात है। भागीरथ की तपस्या के फलस्वरुप गंगा के अवतरण की कथा <ref>वाल्मीकि बालकाण्ड 38 से 44 अध्याय तक</ref> है। कथा के अंत में गंगा के भागीरथी नाम का उल्लेख है-<ref>बालकाण्ड44,6</ref>
 
<blockquote>गंगा त्रिपथगा नाम दिव्या भागीरथीति च त्रीन्पथो भावयन्तीति तस्मान् त्रिपथगा स्मृता</blockquote>
 
<blockquote>गंगा त्रिपथगा नाम दिव्या भागीरथीति च त्रीन्पथो भावयन्तीति तस्मान् त्रिपथगा स्मृता</blockquote>
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सगर ने [[अश्वमेध यज्ञ]] किया। [[इन्द्र]] ने उसके यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया तथा तपस्वी [[कपिल]] के पास ले जाकर खड़ा किया। उधर सगर ने सुमति के पुत्रों को घोड़ा ढूंढ़ने के लिए भेजा। साठ हज़ार राजकुमारों को कहीं घोड़ा नहीं मिला तो उन्होंने सब ओर से पृथ्वी खोद डाली। पूर्व-उत्तर दिशा में [[कपिल]] मुनि के पास घोड़ा देखकर उन्होंने शस्त्र उठाये और मुनि को बुरा-भला कहते हुए उधर बढ़े। फलस्वरूप उनके अपने ही शरीरों से आग निकली जिसने उन्हें भस्म कर दिया। केशिनी के पुत्र का नाम असमंजस तथा असमंजस के पुत्र का नाम [[अंशुमान]] था। असमंजस पूर्वजन्म में योगभ्रष्ट हो गया था, उसकी स्मृति खोयी नहीं थी, अत: वह सबसे विरक्त रह विचित्र कार्य करता रहा था। एक बार उसने बच्चों को [[सरयू नदी|सरयू]] में डाल दिया। पिता ने रुष्ट होकर उसे त्याग दिया। उसने अपने योगबल से बच्चों को जीवित कर दिया तथा स्वयं वन चला गया। यह देखकर सबको बहुत पश्चात्ताप हुआ। राजा सगर ने अपने पौत्र अंशुमान को घोड़ा खोजने भेजा। वह ढूंढ़ता-ढूंढ़ता कपिल मुनि के पास पहुंचा। उनके चरणों में प्रणाम कर उसने विनयपूर्वक स्तुति की। कपिल से प्रसन्न होकर उसे घोड़ा दे दिया तथा कहा कि भस्म हुए चाचाओं का उद्धार गंगाजल से होगा। अंशुमान ने जीवनपर्यंत तपस्या की किंतु वह गंगा को पृथ्वी पर नहीं ला पाया। तदनंतर उसके पुत्र [[दिलीप]] ने भी असफल तपस्या की। दिलीप के पुत्र [[भगीरथ]] के तप से प्रसन्न होकर गंगा ने पृथ्वी पर आना स्वीकार किया। गंगा के वेग को [[शिव]] ने अपनी जटाओं में संभाला। भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर गंगा समुद्र तक पहुंची। भागीरथ के द्वारा गंगा को पृथ्वी पर लाने के कारण यह भागीरथी कहलाई। समुद्र-संगम पर पहुंचकर उसने सगर के पुत्रों का उद्धार किया।<ref>श्रीमद् भागवत, नवम स्कंध, अध्याय 8,9।1-15/ शिव पुराण, 4।3।</ref>
 
सगर ने [[अश्वमेध यज्ञ]] किया। [[इन्द्र]] ने उसके यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया तथा तपस्वी [[कपिल]] के पास ले जाकर खड़ा किया। उधर सगर ने सुमति के पुत्रों को घोड़ा ढूंढ़ने के लिए भेजा। साठ हज़ार राजकुमारों को कहीं घोड़ा नहीं मिला तो उन्होंने सब ओर से पृथ्वी खोद डाली। पूर्व-उत्तर दिशा में [[कपिल]] मुनि के पास घोड़ा देखकर उन्होंने शस्त्र उठाये और मुनि को बुरा-भला कहते हुए उधर बढ़े। फलस्वरूप उनके अपने ही शरीरों से आग निकली जिसने उन्हें भस्म कर दिया। केशिनी के पुत्र का नाम असमंजस तथा असमंजस के पुत्र का नाम [[अंशुमान]] था। असमंजस पूर्वजन्म में योगभ्रष्ट हो गया था, उसकी स्मृति खोयी नहीं थी, अत: वह सबसे विरक्त रह विचित्र कार्य करता रहा था। एक बार उसने बच्चों को [[सरयू नदी|सरयू]] में डाल दिया। पिता ने रुष्ट होकर उसे त्याग दिया। उसने अपने योगबल से बच्चों को जीवित कर दिया तथा स्वयं वन चला गया। यह देखकर सबको बहुत पश्चात्ताप हुआ। राजा सगर ने अपने पौत्र अंशुमान को घोड़ा खोजने भेजा। वह ढूंढ़ता-ढूंढ़ता कपिल मुनि के पास पहुंचा। उनके चरणों में प्रणाम कर उसने विनयपूर्वक स्तुति की। कपिल से प्रसन्न होकर उसे घोड़ा दे दिया तथा कहा कि भस्म हुए चाचाओं का उद्धार गंगाजल से होगा। अंशुमान ने जीवनपर्यंत तपस्या की किंतु वह गंगा को पृथ्वी पर नहीं ला पाया। तदनंतर उसके पुत्र [[दिलीप]] ने भी असफल तपस्या की। दिलीप के पुत्र [[भगीरथ]] के तप से प्रसन्न होकर गंगा ने पृथ्वी पर आना स्वीकार किया। गंगा के वेग को [[शिव]] ने अपनी जटाओं में संभाला। भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर गंगा समुद्र तक पहुंची। भागीरथ के द्वारा गंगा को पृथ्वी पर लाने के कारण यह भागीरथी कहलाई। समुद्र-संगम पर पहुंचकर उसने सगर के पुत्रों का उद्धार किया।<ref>श्रीमद् भागवत, नवम स्कंध, अध्याय 8,9।1-15/ शिव पुराण, 4।3।</ref>
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==टीका टिप्पणी==
 
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12:59, 15 जून 2010 का अवतरण

भागीरथी भारत की एक नदी है जो उत्तरांचल में से बहती है। पौराणिक गाथाओं के अनुसार भागीरथी गंगा की उस शाखा को कहते हैं जो गढ़वाल (उत्तर प्रदेश) में गंगोत्री से निकलकर देवप्रयाग में अलकनंदा में मिल जाती है व गंगा का नाम प्राप्त करती है।

गंगा का एक नाम जिसका संबंध महाराज भागीरथ से है। महाभारत में भी भागीरथी गंगा का वर्णन पांडवों की तीर्थयात्रा के प्रसंग में हैं और बदरीनाथ का वर्णन भी है।

तत्रापश्यत् धर्मात्मा देव देवर्षिपूजितम्, नरनारायण-स्थानं भागीरथ्योपशोभितम्'

स्थिति

भागीरथी गोमुख स्थान से 25 कि.मी. लम्बे गंगोत्री हिमनद से निकलती है। यह समुद्रतल से 618 मीटर की ऊँचाई पर, ॠषिकेश से 70 किमी दूरी पर स्थित हैं।

देवप्रयाग में भागीरथी व अलकनंदा का संगम

भागीरथी का देवप्रयाग पहुँचना

गंगोत्री से निकली भागीरथी मार्ग में अनेक छोटी-बड़ी नदियों को अपने में समेटती हुई जब देवप्रयाग पहुँचती है तो बहुत तेज गति से बहती है। लहरें उफन-उफन कर एक दूसरे से टकराती हैं। तूफानी शोर के साथ भागीरथी का शुद्ध जल यहाँ बड़ी वेग से बहता हुआ श्वेत झाग सा बनाता है। भागीरथी यहाँ वास्तव में भागती हुई प्रतीत होती है। तेजी से दौड़ती-भागती, कूदती उफनती नदी, बहुत वेग, बहुत तेजी से अठखेलियाँ करती भागीरथी बहुत शानदार भव्य दृश्य प्रस्तुत करती है।

अलकनंदा

पहाड़ों के एक ओर तेज वेग से भागती दौड़ती भागीरथी चली आ रही है तो दूसरी ओर शांत अलकनंदा चली आ रही है जो कि शांत, शीतल, मंद-मंद गति और निरंतर गतिशील होकर बहती हुई भागीरथी में मिल जाती है।

संगम

देवप्रयाग में परस्पर मिलने से ठीक पहले भागीरथी अपनी तेज गति व तूफानी अंदाज में अलकनंदा की ओर लपकती हैं। अलकनंदा भी भागीरथी की ओर मुड़ने से पहले रुक जाती है। आगे चलकर अलकनंदा भागीरथी में मिल जाती है। बड़ी सहजता व सरलता से दोनों नदियाँ आपस में मिल जाती है। ऊपरी तौर पर ऐसा लगता है कि दोनों ओर से आती नदियाँ मिलकर एक नदी बनती प्रतीत होती है। इस संगम से ही भागीरथी अपना नाम यहाँ खो देती है और यहाँ पर यह गंगा नदी बन जाती है।

कथा

चित्र:Bhagirathi Near Gamukh.jpg
भागीरथी के पास गोमुख

भागीरथी नदी के सम्बन्ध में एक कथा विश्वविख्यात है। भागीरथ की तपस्या के फलस्वरुप गंगा के अवतरण की कथा [1] है। कथा के अंत में गंगा के भागीरथी नाम का उल्लेख है-[2]

गंगा त्रिपथगा नाम दिव्या भागीरथीति च त्रीन्पथो भावयन्तीति तस्मान् त्रिपथगा स्मृता

रोहित के कुल में बाहुक का जन्म हुआ। शत्रुओं ने उसका राज्य छीन लिया। वह अपनी पत्नी सहित वन चला गया। वन में बुढ़ापे के कारण उसकी मृत्यु हो गयी। उसके गुरु ओर्व ने उसकी पत्नी को सती नहीं होने दिया क्योंकि वह जानता था कि वह गर्भवती है। उसकी सौतों को ज्ञात हुआ तो उन्होंने उसे विष दे दिया। विष का गर्भ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। बालक विष (गर) के साथ ही उत्पन्न हुआ, इसलिए 'स+गर= सगर कहलाया। बड़ा होने पर उसका विवाह दो रानियों से हुआ-

  • सुमति- सुमति के गर्भ से एक तूंबा निकला जिसके फटने पर साठ हज़ार पुत्रों का जन्म हुआ।
  • केशिनी- जिसके असमंजस नामक पुत्र हुआ।

सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया। इन्द्र ने उसके यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया तथा तपस्वी कपिल के पास ले जाकर खड़ा किया। उधर सगर ने सुमति के पुत्रों को घोड़ा ढूंढ़ने के लिए भेजा। साठ हज़ार राजकुमारों को कहीं घोड़ा नहीं मिला तो उन्होंने सब ओर से पृथ्वी खोद डाली। पूर्व-उत्तर दिशा में कपिल मुनि के पास घोड़ा देखकर उन्होंने शस्त्र उठाये और मुनि को बुरा-भला कहते हुए उधर बढ़े। फलस्वरूप उनके अपने ही शरीरों से आग निकली जिसने उन्हें भस्म कर दिया। केशिनी के पुत्र का नाम असमंजस तथा असमंजस के पुत्र का नाम अंशुमान था। असमंजस पूर्वजन्म में योगभ्रष्ट हो गया था, उसकी स्मृति खोयी नहीं थी, अत: वह सबसे विरक्त रह विचित्र कार्य करता रहा था। एक बार उसने बच्चों को सरयू में डाल दिया। पिता ने रुष्ट होकर उसे त्याग दिया। उसने अपने योगबल से बच्चों को जीवित कर दिया तथा स्वयं वन चला गया। यह देखकर सबको बहुत पश्चात्ताप हुआ। राजा सगर ने अपने पौत्र अंशुमान को घोड़ा खोजने भेजा। वह ढूंढ़ता-ढूंढ़ता कपिल मुनि के पास पहुंचा। उनके चरणों में प्रणाम कर उसने विनयपूर्वक स्तुति की। कपिल से प्रसन्न होकर उसे घोड़ा दे दिया तथा कहा कि भस्म हुए चाचाओं का उद्धार गंगाजल से होगा। अंशुमान ने जीवनपर्यंत तपस्या की किंतु वह गंगा को पृथ्वी पर नहीं ला पाया। तदनंतर उसके पुत्र दिलीप ने भी असफल तपस्या की। दिलीप के पुत्र भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर गंगा ने पृथ्वी पर आना स्वीकार किया। गंगा के वेग को शिव ने अपनी जटाओं में संभाला। भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर गंगा समुद्र तक पहुंची। भागीरथ के द्वारा गंगा को पृथ्वी पर लाने के कारण यह भागीरथी कहलाई। समुद्र-संगम पर पहुंचकर उसने सगर के पुत्रों का उद्धार किया।[3]

टीका टिप्पणी

  1. वाल्मीकि बालकाण्ड 38 से 44 अध्याय तक
  2. बालकाण्ड44,6
  3. श्रीमद् भागवत, नवम स्कंध, अध्याय 8,9।1-15/ शिव पुराण, 4।3।