लौहित्य

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लौहित्य ब्रह्मपुत्र नदी का प्राचीन नाम है। 'कालिकापुराण' के निम्न श्लोंको में 'ब्रह्मपुत्र' या 'लोहित्य' के साथ संबद्ध पौराणिक कथा का निर्देश है-

'जातसंप्रत्ययः सोऽथ तीर्थमासाद्य तं वरम्, वीथिं परशूना कृत्वा ब्रह्मपुत्रमवाहयत्। ब्रह्मकुंडात्सुतः सोऽथ कासारे लोहिताह्वये, कैलासोपत्यकायां तुत्यापतत् ब्राह्मण: सुतः। तस्य नाम विधिश्चक्रे स्वयं लोहितगंगकम् लौहित्यात्सरसो जातो लौहित्याख्यस्ततोऽभवत्। स कामरूपमखिलं पीठमाप्लाव्य वारिणा गोपयंतीर्थाणि दक्षिणं याति सागरम।'

  • उपरोक्त उद्धरण से ज्ञात होता है कि पौराणिक अनुश्रृति के अनुसार 'ब्रह्मकुंड' या 'लौहित्यसर'[1] से उत्पन्न होने के कारण ही इस नदी को 'ब्रह्मपुत्र' और 'लौहित्य' नामों से अभिहित किया जाता था।
  • कैलास पर्वत की उपत्यका से निकल कर कामरूप में बहती हुई यह नदी 'दक्षिण सागर' (बंगाल की खाड़ी) में गिरती है। इसे इस उद्धरण में लोहितगंगा भी कहा गया है। इस नाम का महाभारत में भी उल्लेख है।
  • 'ब्रह्मकुंड' या 'ब्रह्मसर' मानसरोवर का ही अभिधान है।[2]
  • 'महाभारत' में भीम की पूर्व दिशा की दिग्विजय यात्रा के संबंध में सुह्म देश के आगे लौहित्य तक पहुंचने का उल्लेख है-

'सुह्यानामधिपं चैव ये च सागरवासिन:, सर्वान् म्लेच्छगणांश्चैव विजिग्ये भरतर्षभः, एवं बहुविधान देशान् विजित्य पवनात्मजः वसुतेभ्य उपादाय लौहित्यगमद्बली।'महाभारत, सभापर्व[3]

'चकम्पे तीर्णलौहित्येतस्मिन् प्राग्ज्योतिषेश्वर: तद्गजालानतां प्राप्तैः सहकालागुरुद्रुभैः।'

  • उपरोक्त श्लोक में लौहित्य नदी के तटवर्ती प्रदेश में कालागुरु के वृक्षों का वर्णन कालिदास ने किया है, जो बहुत समीचीन है।
  • कभी-कभी इस नदी की उत्तरी धारा को, जो उत्तर असम में प्रवाहित है, लौहित्य और दक्षिणी धारा को, जो पूर्व बंगाल (पाकिस्तान) में बहती है, 'ब्रह्मपुत्र' कहा जाता था।
  • बह्मपुत्र का अर्थ 'ब्रह्मसर' से और लौहित्य का अर्थ 'लोहितसर' से निकलने वाली नदी है। शायद नदी के अरुणाभ जल के कारण भी इसे लौहित्य कहा जाता था।
  • लौहित्य नदी के तटवर्ती प्रदेश को भी लौहित्य नाम से अभिहित किया जाता था। उपर्युक्त महाभारत, सभापर्व[6] में लौहित्य, नदी के प्रदेश का भी नाम हो सकता है।[7]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. =मानसरोवर
  2. भौगोलिक तथ्य के अनुसार ब्रह्मपुत्र तिब्बत के दक्षिण-पश्चिम भाग की 'कुवी गांगरी' नामक हिमनदी से निस्सृत हुई है। प्रायः सात सौ मील तक यह नदी तिब्बत के पठार पर ही बहती है, जिसमें 100 मील तक इसका मार्ग हिमालय श्रेणी के समानांतर है। तिब्बती भाषा में इस नदी को 'लिहांग' और 'त्सांगपो' (पवित्र करने वाली) कहते हैं। इस प्रदेश में इसकी सहायक नदियां है- 'एकात्सांगयो', 'क्यीचू' (ल्हासा इसी के तट पर है), 'श्यांगचू' और 'ग्यामदा'। सदिया के निकट ब्रह्मपुत्र असम में प्रवेश करती है, जहां यह गंगा में मिलती है। वहां इसे यमुना कहते हैं। इसके आगे यह 'पद्मा' नाम से प्रसिद्ध है और समुद्र में गिरने के स्थान पर इस 'मेघना' कहते हैं। वर्तमान काल में ब्रह्मपुत्र के उदगम तक पहुंचने का श्रेय कैप्टन किंगडम वार्ड नामक यात्री को दिया जाता है। इन्होंने नदी के उद्गम क्षेत्र की यात्रा 1924 ई. में की थी।
  3. सभापर्व 30, 25, 26
  4. रघुवंश 4, 81
  5. (=गोहाटी, असम)
  6. सभापर्व 30, 26
  7. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 825 |

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