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*होलराय ब्रह्मभट्ट [[अकबर]] के समय में हरिवंश राय के आश्रित थे और कभी कभी शाही दरबार में भी जाया करते थे।  
 
*होलराय ब्रह्मभट्ट [[अकबर]] के समय में हरिवंश राय के आश्रित थे और कभी कभी शाही दरबार में भी जाया करते थे।  
*होलराय ने अकबर से कुछ जमीन पाई थी जिसमें होलपुर गाँव बसाया था।  
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*होलराय ने अकबर से कुछ ज़मीन पाई थी जिसमें होलपुर गाँव बसाया था।  
 
*कहा जाता हैं कि [[गोस्वामी तुलसीदास]] जी ने इन्हें अपना लोटा दिया था जिस पर इन्होंने कहा था -  
 
*कहा जाता हैं कि [[गोस्वामी तुलसीदास]] जी ने इन्हें अपना लोटा दिया था जिस पर इन्होंने कहा था -  
 
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*सम्भवत: होलराय केवल राजाओं और रईसों की विरुदावली वर्णन किया करते थे जिसमें जनता के लिए ऐसा कोई विशेष आकर्षण नहीं था कि इनकी रचना सुरक्षित रहती।  
 
*सम्भवत: होलराय केवल राजाओं और रईसों की विरुदावली वर्णन किया करते थे जिसमें जनता के लिए ऐसा कोई विशेष आकर्षण नहीं था कि इनकी रचना सुरक्षित रहती।  
 
*अकबर बादशाह की प्रशंसा में इन्होंने यह कवित्त लिखा है -  
 
*अकबर बादशाह की प्रशंसा में इन्होंने यह कवित्त लिखा है -  
<poem>दिल्ली तें न तख्त ह्वैहै, बख्त ना मुगल कैसो,  
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<poem>दिल्ली तें न तख्त ह्वैहै, बख्त ना मुग़ल कैसो,  
 
ह्वैहै ना नगर बढ़ि आगरा नगर तें।
 
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गंग तें न गुनी, तानसेन तें न तानबाज,
 
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09:07, 11 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

  • होलराय ब्रह्मभट्ट अकबर के समय में हरिवंश राय के आश्रित थे और कभी कभी शाही दरबार में भी जाया करते थे।
  • होलराय ने अकबर से कुछ ज़मीन पाई थी जिसमें होलपुर गाँव बसाया था।
  • कहा जाता हैं कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने इन्हें अपना लोटा दिया था जिस पर इन्होंने कहा था -


लोटा तुलसीदास को लाख टका को मोल।

  • गोस्वामी जी ने तुरंत उत्तर दिया,


मोल तोल कछु है नहीं, लेहु राय कवि होल।

  • इस घटना से इनकी पुष्ट होती थी।
  • सम्भवत: होलराय केवल राजाओं और रईसों की विरुदावली वर्णन किया करते थे जिसमें जनता के लिए ऐसा कोई विशेष आकर्षण नहीं था कि इनकी रचना सुरक्षित रहती।
  • अकबर बादशाह की प्रशंसा में इन्होंने यह कवित्त लिखा है -

दिल्ली तें न तख्त ह्वैहै, बख्त ना मुग़ल कैसो,
ह्वैहै ना नगर बढ़ि आगरा नगर तें।
गंग तें न गुनी, तानसेन तें न तानबाज,
मान तें न राजा औ न दाता बीरबरतें
खान खानखाना तें न, नर नरहरि तें न,
ह्वैहै ना दीवान कोऊ बेडर टुडर तें।
नवौ खंड सात दीप; सात हू समुद्र पार,
ह्वैहै ना जलालुदीन साह अकबर तें

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