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*निर्माता- कछवाहा ठाकुरों की शेखावत शाखा के संस्थापक के पौत्र रायसिल
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*निर्माण शैली - मदनमोहन मन्दिर से शिल्प में मिलता जुलता है।
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[[चित्र:gopi-nath-temple-1.jpg|गोपी नाथ जी मन्दिर, [[वृन्दावन]]<br /> Gopi Nath Temple, Vrindavan|thumb|250px]]
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सन् 1821 ई. में एक बंगाली कायस्थ ने नया मन्दिर बनवाया जिसका नाम नन्दकुमार घोष था ।
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|निर्माता=कछवाहा ठाकुरों की शेखावत शाखा के संस्थापक के पौत्र रायसिल
इस शृंखला में यह कुछ पहले का मन्दिर है। इसका र्निर्माण कछवाहा ठाकुरों की शेखावत शाखा के संस्थापक के पौत्र रायसिल ने कराया बताते हैं। अफ़ग़ान आक्रमण को विफल करने में उसने इतनी महानता और विशेषता के साथ काम किया था कि [[अकबर]] ने उसे एक जागीर के साथ 1250 घुड़सवारों का मनसबदार बना दिया था। अकबर के अधीन [[राजा मानसिंह]] का भी उसने राणाप्रताप के विरुद्ध साथ दिया था और [[क़ाबुल]] के अभियान में भी ख्याति अर्जित की थी। उसके निधन की तिथि अज्ञात है।
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'''गोपी नाथ जी का मन्दिर''' [[उत्तर प्रदेश]] राज्य में [[मथुरा ज़िला|मथुरा ज़िले]] के [[वृन्दावन]] नगर में स्थित एक [[वैष्णव संप्रदाय]] का मन्दिर है। इस मन्दिर को सन् 1821 ई. में एक बंगाली [[कायस्थ]] ने नया मन्दिर बनवाया जिसका नाम नन्दकुमार घोष था ।
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==इतिहास==
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इसका निर्माण कछवाहा ठाकुरों की शेखावत शाखा के संस्थापक के पौत्र रायसिल ने कराया बताते हैं। अफ़ग़ान आक्रमण को विफल करने में उसने इतनी महानता और विशेषता के साथ काम किया था कि [[अकबर]] ने उसे एक जागीर के साथ 1250 घुड़सवारों का [[मनसबदार]] बना दिया था। अकबर के अधीन [[राजा मानसिंह]] का भी उसने राणाप्रताप के विरुद्ध साथ दिया था और [[क़ाबुल]] के अभियान में भी ख्याति अर्जित की थी। उसके निधन की तिथि अज्ञात है।
 
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गोपी नाथ जी मन्दिर वृन्दावन
गोपी नाथ जी मन्दिर
विवरण गोपी नाथ जी का मन्दिर एक वैष्णव संप्रदाय का मन्दिर है।
राज्य उत्तर प्रदेश
नगर वृन्दावन
निर्माता कछवाहा ठाकुरों की शेखावत शाखा के संस्थापक के पौत्र रायसिल
निर्माण निश्चित तिथि अज्ञात
वास्तु शैली मदनमोहन मन्दिर से शिल्प में मिलता जुलता है।
प्रसिद्धि उत्तरी भारत की स्थापत्य कला की उत्‍कृष्ट इमरतों में से एक
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गोपी नाथ जी का मन्दिर उत्तर प्रदेश राज्य में मथुरा ज़िले के वृन्दावन नगर में स्थित एक वैष्णव संप्रदाय का मन्दिर है। इस मन्दिर को सन् 1821 ई. में एक बंगाली कायस्थ ने नया मन्दिर बनवाया जिसका नाम नन्दकुमार घोष था ।

इतिहास

इसका निर्माण कछवाहा ठाकुरों की शेखावत शाखा के संस्थापक के पौत्र रायसिल ने कराया बताते हैं। अफ़ग़ान आक्रमण को विफल करने में उसने इतनी महानता और विशेषता के साथ काम किया था कि अकबर ने उसे एक जागीर के साथ 1250 घुड़सवारों का मनसबदार बना दिया था। अकबर के अधीन राजा मानसिंह का भी उसने राणाप्रताप के विरुद्ध साथ दिया था और क़ाबुल के अभियान में भी ख्याति अर्जित की थी। उसके निधन की तिथि अज्ञात है। जिस मन्दिर का उसने निर्माण कराया बताते हैं, वह पूर्व वर्णित मदन मोहन मन्दिर वृन्दावन से शिल्प में मिलता-जुलता है। यह काफ़ी भग्नावस्था में था। गर्भ गृह पूरा गिर चुका था, तीनों बुर्ज छत से आ लगे थे और दरवाज़ा भी प्राय: गिर चुका था। इसके सहारे छप्पर बन गये थे जिससे यह दिखाई भी नहीं देता था। ग्राउस ने यह छप्पर गिरवा दिये थे। सन् 1821 ई. में एक बंगाली कायस्थ ने नया मन्दिर बनवाया जिसका नाम नन्दकुमार घोष था। इसी ने मदनमोहन का नया मन्दिर भी बनवाया था। लगभग 3000 रुपये का भेंट-चढ़ावा इसमें आता था और प्राभूत से 1200 रुपये आते थे।


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संबंधित लेख

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