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[[गोवर्धन]] गाँव के बीच में श्री मानसी गंगा है। परिक्रमा करने में दायीं और पड़ती है और पूंछरी से लौटने पर भी दायीं और इसके दर्शन होते है। एक बार श्री [[नन्द]]-[[यशोदा]] एंव सभी ब्रजवासी गंगा स्नान का विचार बनाकर [[गंगा नदी|गंगा]] जी की तरफ चलने लगे। चलते-चलते जब वे गोवर्धन पहुँचे तो वहाँ सन्ध्या हो गयी। अत: रात्रि व्यतीत करने हेतु श्री नन्द महाराज ने श्री गोवर्धन में एक मनोरम स्थान सुनिश्चित किया। [[चित्र:Mansi-Ganga-2.jpg|मानसी गंगा, [[गोवर्धन]]<br /> Mansi Ganga, Govardhan|thumb|200px]]
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{{सूचना बक्सा पर्यटन
यहाँ पर श्री [[कृष्ण]] के मन में विचार आया कि ब्रजधाम में ही सभी-तीर्थों का वास है, परन्तु ब्रजवासीगण इसकी महान महिमा से अनभिज्ञ है। इसलिये मुझे ही इसका कोई समाधान निकालना होगा। श्री कृष्ण जी के मन में ऐसा विचार आते ही श्री गंगा जी मानसी रुप में गिरिराज की तलहटी में प्रकट हुई। प्रात:काल जब समस्त ब्रजवासियों ने गिरिराज तलहटी में श्री गंगा जी को देखा तो वे विस्मित होकर एक दूसरे से वार्तालाप करने लगे। सभी को विस्मित देख अन्तर्यामी श्री कृष्ण बोले कि- इस पावन ब्रजभूमि की सेवा हेतु तो तीनों लोकों के सभी-तीर्थ यहाँ आकर विराजते है। परन्तु फिर भी आपलोग ब्रज छोड़कर गंगा स्नान हेतु जा रहे हैं। इसी कारण माता गंगा आपके सम्मुख आविर्भूत हुई हैं। अत: आपलोग शीघ्र ही इस पवित्र गंगा जल में स्नानादि कार्य सम्पन्न करें। श्री नन्द बाबा ने श्री कृष्ण की इस बात को सुनकर सब गोपों के साथ इस में स्नान किया। रात्रि को सब ने दीपावली का दान दिया। तभी से आज तक भी दीपावली के दिन यहाँ असंख्य दीपों की रोशनी की जाती है। श्री कृष्ण के मन से आविर्भूत होने के कारण यहाँ गंगाजी का नाम मानसीगंगा पड़ा। कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को श्री गंगा जी यहाँ प्रकट हुई थी। आज भी इस तिथी को स्मरण करते हुए हज़ारों भक्तगण यहाँ स्नान-पूजा-अर्चना-दीप दानादि करते हैं। भाग्यवान भक्तों को कभी-कभी इसमें दूध की धारा का दर्शन होता है।
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'''मानसी गंगा''' [[गोवर्धन]] गाँव के बीच में है। [[परिक्रमा]] करने में दायीं और पड़ती है और [[पूंछरी का लौठा गोवर्धन|पूंछरी]] से लौटने पर भी बायीं और इसके दर्शन होते हैं। एक बार श्री [[नन्द]]-[[यशोदा]] एवं सभी ब्रजवासी [[गंगा]] स्नान का विचार बनाकर गंगा जी की तरफ चलने लगे। चलते-चलते जब वे गोवर्धन पहुँचे तो वहाँ सन्ध्या हो गयी। अत: [[रात्रि]] व्यतीत करने हेतु श्री नन्द महाराज ने श्री गोवर्धन में एक मनोरम स्थान सुनिश्चित किया।
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यहाँ पर श्री [[कृष्ण]] के मन में विचार आया कि [[ब्रज|ब्रजधाम]] में ही सभी-तीर्थों का वास है, परन्तु ब्रजवासी गण इसकी महान् महिमा से अनभिज्ञ हैं। इसलिये मुझे ही इसका कोई समाधान निकालना होगा। श्रीकृष्ण जी के मन में ऐसा विचार आते ही श्री गंगा जी मानसी रूप में गिरिराज जी की तलहटी में प्रकट हुई। प्रात:काल जब समस्त ब्रजवासियों ने गिरिराज तलहटी में श्री गंगा जी को देखा तो वे विस्मित होकर एक दूसरे से वार्तालाप करने लगे। सभी को विस्मित देख अन्तर्यामी श्रीकृष्ण बोले कि इस पावन ब्रजभूमि की सेवा हेतु तो तीनों लोकों के सभी-तीर्थ यहाँ आकर विराजते हैं। परन्तु फिर भी आप लोग ब्रज छोड़कर गंगा स्नान हेतु जा रहे हैं। इसी कारण माता गंगा आपके सम्मुख आविर्भूत हुई हैं। अत: आप लोग शीघ्र ही इस पवित्र गंगा जल में स्नानादि कार्य सम्पन्न करें। श्री नन्द बाबा ने श्रीकृष्ण की इस बात को सुनकर सब गोपों के साथ इसमें स्नान किया। रात्रि को सब ने दीपावली का दान दिया। तभी से आज तक भी दीपावली के दिन यहाँ असंख्य दीपों की रोशनी की जाती है। श्रीकृष्ण के मन से आविर्भूत होने के कारण यहाँ गंगा जी का नाम मानसी गंगा पड़ा। [[कार्तिक|कार्तिक मास]] की [[अमावस्या]] [[तिथि]] को श्री गंगा जी यहाँ प्रकट हुईं थीं। आज भी इस तिथि को स्मरण करते हुए हज़ारों भक्त गण यहाँ स्नान-पूजा-अर्चना-दीप दानादि करते हैं। भाग्यवान [[भक्त|भक्तों]] को कभी-कभी इसमें [[दूध]] की धारा का दर्शन होता है।
 
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श्री भक्ति विलास में कहा गया है- गंगे दुग्धमये देवी! भगवन्मानसोदवे। भगवान श्रीकृष्ण के मन से आविर्भूत होने वाली दुग्धमयी गंगा देवी! आपको मैं नमस्कार करता हूँ। इस मानसी गंगा का प्रसिद्ध गंगा नदी से सर्वाधिक माहात्म्य है। वह श्री भगवान के चरणों से उत्पन्न हुई है और इसकी उत्पत्ति श्री भगवान के मन से है। इसमें श्री राधाकृष्ण सखियों के साथ यहाँ नौका-विहार की लीला करते हैं। इस मानसी गंगा में श्री रघुनाथ दास गोस्वामीपाद ने श्री राधाकृष्ण की नौंका-विलास लीला का दर्शन किया था। मानसी गंगा में एक बार स्नान करने से जो फल प्राप्त होता है वह हज़ारों [[अश्वमेध यज्ञ|अश्वमेध यज्ञों]] तथा सैकड़ों [[राजसूय यज्ञ|राजसूय यज्ञों]] के करने से प्राप्त नहीं होता हैं<ref>अश्वमेधसहस्त्राणि राजसूयशतानि च। मानसीगंगाया तुल्यानि भवन्तात्र नो गिरौ</ref>। मानसी गंगा के तटों को पत्थरों से सीढ़ियों सहित बनवाने का श्रेय जयपुर के राजा श्री मानसिंह के पिता राजा भगवानदास को है। मानसी गंगा के चारों और दर्शनीय स्थानों के दर्शन करते हुए परिक्रमा लगाते हैं।
श्री भक्ति विलास में कहा गया है- गंगे दुग्धमये देवी! भगवन्मानसोदवे। भगवान श्री कृष्ण के मन से आविर्भूत होने वाली दुग्धमयी गंगा देवी! आपको मैं नमस्कार करता हूँ। इस मानसी गंगा का प्रसिद्ध गंगा नदी से सर्वाधिक माहात्म्य है। वह श्री भगवान के चरणों से उत्पन्न हुई है और इसकी उत्पत्ति श्री भगवान के मन से है। इसमें श्री राधाकृष्ण सखियों के साथ यहाँ नौका-विहार की लीला करते हैं। इस मानसी गंगा में श्री रघुनाथ दास गोस्वामीपाद ने श्री राधाकृष्ण की नौंका-विलास लीला का दर्शन किया था। मानसी गंगा में एक बार स्नान करने से जो फल प्राप्त होता है वह हज़ारों अश्वमेध यज्ञों तथा सैकड़ों राजसूय यज्ञों के करने से प्राप्त नहीं होता हैं<ref>अश्वमेधसहस्त्राणि राजसूयशतानि च। मानसीगंगाया तुल्यानि भवन्तात्र नो गिरौ</ref>। मानसी गंगा के तटों को पत्थरों से सीढ़ियों सहित बनवाने का श्रेय [[जयपुर]] के राजा श्री मानसिंह के पिता राजा श्री भगवानदास को है। मानसी गंगा के चारों और दर्शनीय स्थानों के दर्शन करते हुए परिक्रमा लगाते हैं।
 
  
 
==परिक्रमा पद्वति==
 
==परिक्रमा पद्वति==
मानसी गंगा की परिक्रमा किसी भी स्थान से किसी भी समय उठा सकते है। मगर जहाँ से परिक्रमा आरम्भ करें वही पर आकर परिक्रमा को विराम देना चाहिए। मुखारविन्द से परिक्रमा प्रारम्भ करते हैं। मानसी गंगा के पूर्व तट पर मुखारविन्द मन्दिर के निकट श्री लक्ष्मीनारायण मन्दिर है। यहाँ से गोवर्धन परिक्रमा मार्ग में चलते हुए [[हरिदेव जी मन्दिर गोवर्धन|श्री हरिदेव जी का मन्दिर]] है। फिर यहाँ से आगे परिक्रमा मार्ग में चलते हुए दानघाटी पर श्री दानबिहारी जी के मन्दिर के दर्शन होते हैं। चलते-चलते श्री लक्ष्मीनारायण मन्दिर, श्री राधा मदनमोहन मन्दिर, श्री बिहारी जी मन्दिर, श्री विश्वकर्मा मन्दिर, श्री वेंकटेश्वर मन्दिर, श्री राधावल्लभ मन्दिर, यहाँ से श्री श्यामसुन्दर मन्दिर, श्री चकलेश्वर महादेव मन्दिर इत्यादि होते हुए श्री मुखारविन्द मन्दिर में आते हुए परिक्रमा को विराम देते है।
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मानसी गंगा की परिक्रमा किसी भी स्थान से किसी भी समय उठा सकते हैं। मगर जहाँ से परिक्रमा आरम्भ करें वही पर आकर परिक्रमा को विराम देना चाहिए। मुखारविन्द से परिक्रमा प्रारम्भ करते हैं। मानसी गंगा के पूर्व तट पर मुखारविन्द मन्दिर के निकट श्री लक्ष्मीनारायण मन्दिर है। यहाँ से गोवर्धन परिक्रमा मार्ग में चलते हुए [[हरिदेव जी मन्दिर गोवर्धन|श्री हरिदेव जी का मन्दिर]] है। फिर यहाँ से आगे परिक्रमा मार्ग में चलते हुए दानघाटी पर श्री दान बिहारी जी के मन्दिर के दर्शन होते हैं। चलते-चलते श्री लक्ष्मीनारायण मन्दिर, श्री राधा मदनमोहन मन्दिर, श्री बिहारी जी मन्दिर, श्री विश्वकर्मा मन्दिर, श्री वेंकटेश्वर मन्दिर, श्री राधावल्लभ मन्दिर, यहाँ से श्री श्यामसुन्दर मन्दिर, [[चकलेश्वर महादेव गोवर्धन|श्री चकलेश्वर महादेव मन्दिर]] इत्यादि होते हुए श्री मुखारविन्द मन्दिर में आते हुए परिक्रमा को विराम देते हैं।
 
==मन्दिर तथा कुण्ड समूह==
 
==मन्दिर तथा कुण्ड समूह==
 
 
'''मानसी गंगा के पूर्व दिशा में'''
 
'''मानसी गंगा के पूर्व दिशा में'''
  
 
श्री मुखारविन्द, श्री लक्ष्मीनारायण मन्दिर, श्री किशोरीश्याम मन्दिर, श्री गिरिराज मन्दिर, श्री मन्महाप्रभु जी की बैठक, श्री राधाकृष्ण मन्दिर स्थित हैं।
 
श्री मुखारविन्द, श्री लक्ष्मीनारायण मन्दिर, श्री किशोरीश्याम मन्दिर, श्री गिरिराज मन्दिर, श्री मन्महाप्रभु जी की बैठक, श्री राधाकृष्ण मन्दिर स्थित हैं।
  
[[चित्र:Mansi-Ganga-1.jpg|मानसी गंगा,[[गोवर्धन]]<br /> Mansi Ganga, Govardhan|thumb|200px|left]]
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[[चित्र:Mansi-Ganga-1.jpg|मानसी गंगा,[[गोवर्धन]]|thumb|200px|left]]
  
 
'''दक्षिण दिशा में'''
 
'''दक्षिण दिशा में'''
  
श्री हरिदेव मन्दिर, ब्रह्मकुण्ड, श्री मनसादेवी मन्दिर, श्री गौरादाऊ जी, श्री गन्धेश्वर महादेव जी, श्री यमुना मोहन जी, श्री[[महादेव]]-हनुमान जी, श्री बिहारी जी मन्दिर दर्शनीय हैं।
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श्री हरिदेव मन्दिर, ब्रह्मकुण्ड, श्री मनसादेवी मन्दिर, श्री गौरादाऊ जी, श्री गन्धेश्वर महादेव जी, श्री यमुना मोहन जी, श्री[[महादेव]]- हनुमान जी, श्री बिहारी जी मन्दिर दर्शनीय हैं।
  
 
'''पश्चिम दिशा में'''
 
'''पश्चिम दिशा में'''
  
श्री गिरिराज महाराज (श्री साक्षीगोपाल) मन्दिर, श्री विश्वकर्मा, श्री राधाकृष्ण मन्दिर स्थित है।
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श्री गिरिराज महाराज (श्री साक्षीगोपाल) मन्दिर, श्री विश्वकर्मा, श्री राधाकृष्ण मन्दिर स्थित हैं।
  
 
'''उत्तर दिशा में'''
 
'''उत्तर दिशा में'''
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श्री राधाबल्लभ मन्दिर, श्री नरसिंह, श्री श्यामसुन्दर, श्री बिहारी जी, श्री लक्ष्मीनारायण, श्री नाथ जी, श्री नन्दबाबा का मन्दिर, श्री राधारमण, नूतन मन्दिर, श्री अद्वैतदास बाबा का भजन कुटीर, श्री तीन कौड़ी बाबा का आश्रम, सिद्धबाबा का भजन कुटीर, श्री राधागोविन्द मन्दिर, भागवत भजन, श्री चकलेश्वर महादेव, महाप्रभु मन्दिर, राजकुण्ड, झूलन क्रीड़ा स्थान, सिद्ध श्री हनुमान मन्दिर इत्यादि दर्शनीय हैं।
 
श्री राधाबल्लभ मन्दिर, श्री नरसिंह, श्री श्यामसुन्दर, श्री बिहारी जी, श्री लक्ष्मीनारायण, श्री नाथ जी, श्री नन्दबाबा का मन्दिर, श्री राधारमण, नूतन मन्दिर, श्री अद्वैतदास बाबा का भजन कुटीर, श्री तीन कौड़ी बाबा का आश्रम, सिद्धबाबा का भजन कुटीर, श्री राधागोविन्द मन्दिर, भागवत भजन, श्री चकलेश्वर महादेव, महाप्रभु मन्दिर, राजकुण्ड, झूलन क्रीड़ा स्थान, सिद्ध श्री हनुमान मन्दिर इत्यादि दर्शनीय हैं।
 
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[[चित्र:Mansi-Ganga-8.jpg|thumb|200px|मानसी गंगा, [[गोवर्धन]]<br />
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[[चित्र:Mansi-Ganga-8.jpg|thumb|300px|मानसी गंगा, [[गोवर्धन]]<br />
 
Mansi Ganga, Govardhan]]
 
Mansi Ganga, Govardhan]]
मानसी गंगा के सभी घाटों का निर्माण जयपुर नरेश मानसिंह के पिता राजा भगवानदास ने कराया था। मानसी गंगा का बहुत महत्व है। मानसी गंगा के प्राकट्य की तीन कथायें कही जाती हैं।  
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मानसी गंगा के सभी घाटों का निर्माण जयपुर नरेश मानसिंह के [[पिता]] राजा भगवानदास ने कराया था। मानसी गंगा का बहुत महत्त्व है। मानसी गंगा के प्राकट्य की तीन कथायें कही जाती हैं।  
#श्रीकृष्ण ने गोपियों के कहने पर वृष हत्या के पाप से मुक्त होने के लिये अपने मन से इसे प्रकट किया तथा एवं इसमें स्नान कर पाप मुक्त हुए।
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#श्रीकृष्ण ने गोपियों के कहने पर वृष हत्या के पाप से मुक्त होने के लिये अपने मन से इसे प्रकट किया तथा इसमें स्नान कर पाप मुक्त हुए।
#श्री नन्दबाबा और यशोदा मैया ब्रजवासियों के साथ गंगा स्नान के लिये यात्रा पर जा रहे थे। रात में इन्होंने गोवर्धन में विश्राम किया। कृष्ण ने विचार किया कि जब सारे तीर्थ ब्रज में विद्यमान हैं, तो इतनी दूर क्या जाना? कृष्ण ने भागीरथी गंगा का स्मरण किया और स्मरण करते ही गंगा वहाँ दीपावली के दिन प्रकट हो गयीं। रात्रि में सभी ने दीपदान किया तथा स्नान किया। जब से प्रतिवर्ष लाखों तीर्थयात्री यहाँ दीपावली पर स्नान करते हैं और दीपदान करते हैं।
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#श्री नन्दबाबा और यशोदा मैया ब्रजवासियों के साथ गंगा स्नान के लिये यात्रा पर जा रहे थे। [[रात]] में इन्होंने गोवर्धन में विश्राम किया। कृष्ण ने विचार किया कि जब सारे तीर्थ ब्रज में विद्यमान हैं, तो इतनी दूर क्या जाना? कृष्ण ने [[भागीरथी]] गंगा का स्मरण किया और स्मरण करते ही गंगा वहाँ [[दीपावली]] के दिन प्रकट हो गयीं। रात्रि में सभी ने दीपदान किया तथा स्नान किया। जब से प्रतिवर्ष लाखों तीर्थ यात्री यहाँ दीपावली पर स्नान करते हैं और दीपदान करते हैं।
#श्रीकृष्ण जी की पटरानी यमुना जी ने अपनी बड़ी बहिन गंगा के ऊपर कृपा करने के लिये कृष्ण से प्रार्थना की। कृष्ण ने यमुना की प्रार्थना सुनकर उसी समय गंगा का आह्वान किया और गोपियों के साथ जल विहार कर उन्हें कृतार्थ किया।
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#श्रीकृष्ण जी की पटरानी [[यमुना|यमुना जी]] ने अपनी बड़ी बहिन गंगा के ऊपर कृपा करने के लिये कृष्ण से प्रार्थना की। कृष्ण ने यमुना की [[प्रार्थना]] सुनकर उसी समय गंगा का आह्वान किया और गोपियों के साथ जल विहार कर उन्हें कृतार्थ किया।
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==वीथिका मानसी गंगा==
 
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चित्र:Mansi-Ganga-7.jpg|मानसी गंगा, [[गोवर्धन]]<br /> Mansi Ganga, Govardhan
 
चित्र:Mansi-Ganga-7.jpg|मानसी गंगा, [[गोवर्धन]]<br /> Mansi Ganga, Govardhan
 
चित्र:Mansi-Ganga-4.jpg|मानसी गंगा पर स्नान करते श्रद्धालु, [[गोवर्धन]]<br /> Scene Of Pilgrim's Bath At Mansi Ganga, Govardhan
 
चित्र:Mansi-Ganga-4.jpg|मानसी गंगा पर स्नान करते श्रद्धालु, [[गोवर्धन]]<br /> Scene Of Pilgrim's Bath At Mansi Ganga, Govardhan
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चित्र:Mansi-Ganga-Goverdhan-6.jpg|मानसी गंगा, गोवर्धन<br /> Mansi Ganga, Govardhan
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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==अन्य लिंक==  
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==संबंधित लेख==  
 
{{ब्रज के दर्शनीय स्थल}}
 
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[[Category:ब्रज]]  
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{{उत्तर प्रदेश के पर्यटन स्थल}}{{उत्तर प्रदेश के धार्मिक स्थल}}
[[Category:पर्यटन कोश]]  
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[[Category:ब्रज]][[Category:ब्रज के धार्मिक स्थल]][[Category:उत्तर प्रदेश के धार्मिक स्थल]][[Category:हिन्दू धार्मिक स्थल]][[Category:पर्यटन कोश]]  
[[Category:उत्तर प्रदेश के पर्यटन स्थल]]
 
[[Category:ब्रज के धार्मिक स्थल]]
 
 
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11:09, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

मानसी गंगा गोवर्धन
मानसी गंगा, गोवर्धन
विवरण मानसी गंगा गोवर्धन में स्थित है। श्रीकृष्ण के मन से आविर्भूत होने के कारण गंगा जी का नाम मानसी गंगा पड़ा।
राज्य उत्तर प्रदेश
ज़िला मथुरा
प्रसिद्धि हिन्दू धार्मिक स्थल
कब जाएँ कभी भी
बस अड्डा गोवर्धन बस स्टैन्ड
यातायात बस, कार, ऑटो आदि
क्या देखें दानघाटी, राधाकुण्ड गोवर्धन, कुसुम सरोवर गोवर्धन, पूंछरी का लौठा, उद्धव कुण्ड, जतीपुरा
कहाँ ठहरें धर्मशाला, गैस्ट हाउस आदि
संबंधित लेख गोवर्धन, राधाकुण्ड गोवर्धन, कुसुम सरोवर गोवर्धन, काम्यवन, वृन्दावन, गोकुल, महावन, बरसाना, नन्दगाँव, कृष्ण, राधा


अन्य जानकारी इस मानसी गंगा का प्रसिद्ध गंगा नदी से सर्वाधिक माहात्म्य है। वह श्री भगवान के चरणों से उत्पन्न हुई है और इसकी उत्पत्ति श्री भगवान के मन से है। इसमें श्री राधा-कृष्ण सखियों के साथ यहाँ नौका-विहार की लीला करते हैं।
अद्यतन‎

मानसी गंगा गोवर्धन गाँव के बीच में है। परिक्रमा करने में दायीं और पड़ती है और पूंछरी से लौटने पर भी बायीं और इसके दर्शन होते हैं। एक बार श्री नन्द-यशोदा एवं सभी ब्रजवासी गंगा स्नान का विचार बनाकर गंगा जी की तरफ चलने लगे। चलते-चलते जब वे गोवर्धन पहुँचे तो वहाँ सन्ध्या हो गयी। अत: रात्रि व्यतीत करने हेतु श्री नन्द महाराज ने श्री गोवर्धन में एक मनोरम स्थान सुनिश्चित किया। यहाँ पर श्री कृष्ण के मन में विचार आया कि ब्रजधाम में ही सभी-तीर्थों का वास है, परन्तु ब्रजवासी गण इसकी महान् महिमा से अनभिज्ञ हैं। इसलिये मुझे ही इसका कोई समाधान निकालना होगा। श्रीकृष्ण जी के मन में ऐसा विचार आते ही श्री गंगा जी मानसी रूप में गिरिराज जी की तलहटी में प्रकट हुई। प्रात:काल जब समस्त ब्रजवासियों ने गिरिराज तलहटी में श्री गंगा जी को देखा तो वे विस्मित होकर एक दूसरे से वार्तालाप करने लगे। सभी को विस्मित देख अन्तर्यामी श्रीकृष्ण बोले कि इस पावन ब्रजभूमि की सेवा हेतु तो तीनों लोकों के सभी-तीर्थ यहाँ आकर विराजते हैं। परन्तु फिर भी आप लोग ब्रज छोड़कर गंगा स्नान हेतु जा रहे हैं। इसी कारण माता गंगा आपके सम्मुख आविर्भूत हुई हैं। अत: आप लोग शीघ्र ही इस पवित्र गंगा जल में स्नानादि कार्य सम्पन्न करें। श्री नन्द बाबा ने श्रीकृष्ण की इस बात को सुनकर सब गोपों के साथ इसमें स्नान किया। रात्रि को सब ने दीपावली का दान दिया। तभी से आज तक भी दीपावली के दिन यहाँ असंख्य दीपों की रोशनी की जाती है। श्रीकृष्ण के मन से आविर्भूत होने के कारण यहाँ गंगा जी का नाम मानसी गंगा पड़ा। कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को श्री गंगा जी यहाँ प्रकट हुईं थीं। आज भी इस तिथि को स्मरण करते हुए हज़ारों भक्त गण यहाँ स्नान-पूजा-अर्चना-दीप दानादि करते हैं। भाग्यवान भक्तों को कभी-कभी इसमें दूध की धारा का दर्शन होता है।


श्री भक्ति विलास में कहा गया है- गंगे दुग्धमये देवी! भगवन्मानसोदवे। भगवान श्रीकृष्ण के मन से आविर्भूत होने वाली दुग्धमयी गंगा देवी! आपको मैं नमस्कार करता हूँ। इस मानसी गंगा का प्रसिद्ध गंगा नदी से सर्वाधिक माहात्म्य है। वह श्री भगवान के चरणों से उत्पन्न हुई है और इसकी उत्पत्ति श्री भगवान के मन से है। इसमें श्री राधाकृष्ण सखियों के साथ यहाँ नौका-विहार की लीला करते हैं। इस मानसी गंगा में श्री रघुनाथ दास गोस्वामीपाद ने श्री राधाकृष्ण की नौंका-विलास लीला का दर्शन किया था। मानसी गंगा में एक बार स्नान करने से जो फल प्राप्त होता है वह हज़ारों अश्वमेध यज्ञों तथा सैकड़ों राजसूय यज्ञों के करने से प्राप्त नहीं होता हैं[1]। मानसी गंगा के तटों को पत्थरों से सीढ़ियों सहित बनवाने का श्रेय जयपुर के राजा श्री मानसिंह के पिता राजा भगवानदास को है। मानसी गंगा के चारों और दर्शनीय स्थानों के दर्शन करते हुए परिक्रमा लगाते हैं।

परिक्रमा पद्वति

मानसी गंगा की परिक्रमा किसी भी स्थान से किसी भी समय उठा सकते हैं। मगर जहाँ से परिक्रमा आरम्भ करें वही पर आकर परिक्रमा को विराम देना चाहिए। मुखारविन्द से परिक्रमा प्रारम्भ करते हैं। मानसी गंगा के पूर्व तट पर मुखारविन्द मन्दिर के निकट श्री लक्ष्मीनारायण मन्दिर है। यहाँ से गोवर्धन परिक्रमा मार्ग में चलते हुए श्री हरिदेव जी का मन्दिर है। फिर यहाँ से आगे परिक्रमा मार्ग में चलते हुए दानघाटी पर श्री दान बिहारी जी के मन्दिर के दर्शन होते हैं। चलते-चलते श्री लक्ष्मीनारायण मन्दिर, श्री राधा मदनमोहन मन्दिर, श्री बिहारी जी मन्दिर, श्री विश्वकर्मा मन्दिर, श्री वेंकटेश्वर मन्दिर, श्री राधावल्लभ मन्दिर, यहाँ से श्री श्यामसुन्दर मन्दिर, श्री चकलेश्वर महादेव मन्दिर इत्यादि होते हुए श्री मुखारविन्द मन्दिर में आते हुए परिक्रमा को विराम देते हैं।

मन्दिर तथा कुण्ड समूह

मानसी गंगा के पूर्व दिशा में

श्री मुखारविन्द, श्री लक्ष्मीनारायण मन्दिर, श्री किशोरीश्याम मन्दिर, श्री गिरिराज मन्दिर, श्री मन्महाप्रभु जी की बैठक, श्री राधाकृष्ण मन्दिर स्थित हैं।

मानसी गंगा,गोवर्धन

दक्षिण दिशा में

श्री हरिदेव मन्दिर, ब्रह्मकुण्ड, श्री मनसादेवी मन्दिर, श्री गौरादाऊ जी, श्री गन्धेश्वर महादेव जी, श्री यमुना मोहन जी, श्रीमहादेव- हनुमान जी, श्री बिहारी जी मन्दिर दर्शनीय हैं।

पश्चिम दिशा में

श्री गिरिराज महाराज (श्री साक्षीगोपाल) मन्दिर, श्री विश्वकर्मा, श्री राधाकृष्ण मन्दिर स्थित हैं।

उत्तर दिशा में

श्री राधाबल्लभ मन्दिर, श्री नरसिंह, श्री श्यामसुन्दर, श्री बिहारी जी, श्री लक्ष्मीनारायण, श्री नाथ जी, श्री नन्दबाबा का मन्दिर, श्री राधारमण, नूतन मन्दिर, श्री अद्वैतदास बाबा का भजन कुटीर, श्री तीन कौड़ी बाबा का आश्रम, सिद्धबाबा का भजन कुटीर, श्री राधागोविन्द मन्दिर, भागवत भजन, श्री चकलेश्वर महादेव, महाप्रभु मन्दिर, राजकुण्ड, झूलन क्रीड़ा स्थान, सिद्ध श्री हनुमान मन्दिर इत्यादि दर्शनीय हैं।


मानसी गंगा, गोवर्धन
Mansi Ganga, Govardhan

मानसी गंगा के सभी घाटों का निर्माण जयपुर नरेश मानसिंह के पिता राजा भगवानदास ने कराया था। मानसी गंगा का बहुत महत्त्व है। मानसी गंगा के प्राकट्य की तीन कथायें कही जाती हैं।

  1. श्रीकृष्ण ने गोपियों के कहने पर वृष हत्या के पाप से मुक्त होने के लिये अपने मन से इसे प्रकट किया तथा इसमें स्नान कर पाप मुक्त हुए।
  2. श्री नन्दबाबा और यशोदा मैया ब्रजवासियों के साथ गंगा स्नान के लिये यात्रा पर जा रहे थे। रात में इन्होंने गोवर्धन में विश्राम किया। कृष्ण ने विचार किया कि जब सारे तीर्थ ब्रज में विद्यमान हैं, तो इतनी दूर क्या जाना? कृष्ण ने भागीरथी गंगा का स्मरण किया और स्मरण करते ही गंगा वहाँ दीपावली के दिन प्रकट हो गयीं। रात्रि में सभी ने दीपदान किया तथा स्नान किया। जब से प्रतिवर्ष लाखों तीर्थ यात्री यहाँ दीपावली पर स्नान करते हैं और दीपदान करते हैं।
  3. श्रीकृष्ण जी की पटरानी यमुना जी ने अपनी बड़ी बहिन गंगा के ऊपर कृपा करने के लिये कृष्ण से प्रार्थना की। कृष्ण ने यमुना की प्रार्थना सुनकर उसी समय गंगा का आह्वान किया और गोपियों के साथ जल विहार कर उन्हें कृतार्थ किया।


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वीथिका मानसी गंगा

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अश्वमेधसहस्त्राणि राजसूयशतानि च। मानसीगंगाया तुल्यानि भवन्तात्र नो गिरौ

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